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सोमवार, 9 दिसंबर 2024

"गुरु गीता" (भाग-3)

"गुरु गीता" (भाग-3)

ॐ !! वंदे गुरु परंपराम् !! ॐ

गुरु महिमा का बोध करवाने वाली गुरु गीता के दूसरे भाग में वर्णित श्लोक किसी ऋषि-मुनि, साधु-संन्यासी, आचार्य पण्डित या विद्वान द्वारा रचित नहीं है। बल्कि ये श्लोक गुरुओं के भी परम गुरु भगवान शंकर के ब्रह्मज्ञानी गुरुओं के प्रति उद्‌गार हैं।

श्रीमद्भागवत महापुराण के एकादश स्कन्ध में श्री शुकदेव जी महाराज कहते हैं-

ध्येयं सदा परिभवहनम भीष्टदोहं तीर्थास्पदं शिवविरिञ्चनुतं शरण्यम्।

भृत्यार्तिहं प्रणतपाल भवाधिपोतं वन्दे महापुरुष ते चरणारविन्दम् ।।

(श्रीमद्भागवत महापुराण एकादश स्कन्ध 5/33)

अर्थात् हे प्रभु! आप शरणागत रक्षक हैं। आपके चरणारविन्द सदा-सर्वदा ध्यान करने योग्य, मोह-माया का अन्त करने वाले तथा भक्तों को समस्त वस्तुओं का दान देने वाले कामधेनु हैं। वे तीर्थों को भी तीर्थ बनाने वाले परम पवित्र स्वयं तीर्थ स्वरूप हैं। शिव ब्रह्मा और बड़े-बड़े देवता भी उन्हें नमस्कार करते हैं और चाहे जो कोई भी उनकी शरण में आ जाये उसे स्वीकार कर लेते हैं। सेवकों की समस्त विपत्तियों के नाशक और भव सागर से पार ले जाने के लिये सुदृढ़ जहाज हैं। हे महापुरुष। हे सद्‌गुरुदेव! मैं आपके उन्हीं परम पावन चरणारविन्दों की वन्दना करता हूँ। 
पावन गुरुवाणी में पाँचवें गुरु श्रीगुरु अर्जुन देव जी महाराज सुखमनी साहिब में फरमाते हैं-

ब्रह्मज्ञानी आप परमेश्वर, ब्रह्मज्ञानी को ढूँढ़ें महेश्वर ।।

इसीलिए हम परम पुरुष भगवान आदि नारायण से लेकर ब्रह्मा, वशिष्ठ, पाराशर, वेदव्यास, शुकदेव, शंकराचार्य से लेकर वर्तमान काल में श्री युगपुरुष जी (सद्गुरुदेव महाराज) के रूप में चली आ रही अक्षुण्ण समस्त गुरु परम्परा के दिव्य पाद पद्मों में कोटिशः प्रणाम करते हुए विनम्र भाव से प्रार्थना करते हैं कि आपश्री हमारे समस्त पापों व अगणित दोषों को क्षमा करते हुए अपनी अहैतुकी कृपा से हमारा रक्षण, मार्गदर्शन व कल्याण करते रहें।

हे मेरे गुरुदेव करुणासिन्धु करुणा कीजिये।

हूँ अधम आधीन अशरण अब शरण में लीजिये। हे मेरे गुरुदेव करुणासिन्धु करुणा कीजिये।

हम कितने सौभाग्यशाली हैं कि घोर कलियुग की इस भीषण बेला में हमें ब्रह्म स्वरूप श्री युगपुरुष महाराज जैसे वेदान्त केसरी सद्‌गुरु की सन्निधी प्राप्त हुई है जो ईश्वरीय अनुग्रह का स्पष्ट प्रमाण है। मेरी सभी गुरुभक्तों व अध्यात्म पथ के जिज्ञासुओं से विनम्र अनुरोध है कि हम सभी स्कन्द पुराण में वर्णित गुरु गीता का स्वाध्याय, चिन्तन, मनन व पठन-पाठन अवश्य करें और गुरु महिमा से परिचित हो सकें। जिनकी ब्रह्मनिष्ठा का गुणगान करते हुए गागर में सागर भरने वाले पूज्य संत कबीर साहिब जी फरमाते हैं-

सब धरती कागद करूँ, लेखनी सब बनराय। सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुन लिखा न जाय ॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !! 

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