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रविवार, 8 दिसंबर 2024

"गुरु गीता" (भाग-2)


"गुरु गीता" (भाग-2)

ॐ !! वंदे गुरु परंपराम् !! ॐ

महर्षि श्री वेद व्यास जी ने मानव बुद्धि की इसी समस्या के समाधान के लिये वेद को चार भागों में विभक्त किया और वेद के सारभूत तत्त्व को सरस व सरल भाषा में जन-जन तक पहुँचाने के लिये 18 पुराणों की रचना की। उन 18 पुराणों में 'स्कन्द पुराण' एक विशिष्ट पुराण है। जिसके उत्तरकाण्ड में गुरु तत्त्व की महिमा का वर्णन करते हुए माता पार्वती व भगवान शंकर का संवाद 'गुरु गीता' के रूप में उपलब्ध है।

वात्सल्यमयी जगजननी माँ पार्वती हम जैसे अज्ञानी व दिशाहीन होकर भटक रहे बालकों की श्रेयमार्ग में उन्नति व जीवन के परम लक्ष्य 'मोक्ष' के प्राप्ति केन्द्र बिन्दु 'गुरु तत्त्व' की महिमा की विशद व्याख्या के लिये भगवान शंकर से विनम्र अनुरोध करती हैं। लोक कल्याण के लिये करुणावतार भगवान शंकर माता पार्वती को 'गुरु गीता' का उपदेश करते हुए कहते हैं कि 'पूर्ण गुरु की शरण में जाते ही निश्चित शिष्य का कल्याण होता है। गुरु कृपा से अधिकारी शिष्य के सभी कर्म बन्धन नष्ट हो जाते हैं और वह पूर्णत्व को प्राप्त कर ब्रह्म स्वरूप हो जाता है।

स्कन्द पुराण के उत्तरकाण्ड में 'गुरु गीता' के रूप में भगवान शंकर व माँ पार्वती का अमृतमय संवाद 350 श्लोकों में संकलित है। गुरु गीता के सभी श्लोक पठनीय, भजनीय, सेवनीय करते हुए प्रकाश स्तम्भ की भाँति हमारा मार्गदर्शन व भ्रान्तियों का निवारण करते हैं। स्थानाभाव के कारण गुरु गीता के कुछ प्रमुख श्लोकों का वर्णन किया जा रहा है:-

1. गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ।।

2. अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।

3. अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्। तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ।।

4. न गुरोरधिकं तत्वं न गुरोरधिकं तपः। तत्वज्ञानात् पर नास्ति तस्मै श्री गुरवे नमः ।।

5. अनेक जन्म संप्राप्त कर्म बन्ध विदाहने। आत्मज्ञान प्रदानेन तस्मै श्री गुरवे नमः।।

6. चैतन्यः शाश्वतः शान्तः व्योमातीतो निरंजनः । बिन्दु नाद कलातीतः तस्मै श्री गुरवे नमः ।।

7. ब्रह्मानन्दं परं सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम्। द्वन्द्वातीतं गगन सदृशं तत्वमस्यादि लक्ष्यम् ।। एक नित्यं विमलमचलम् सर्वधी साक्षीभूतम्। भावतीतं त्रिगुणरहितं सद्‌गुरुं तं नमामि ।।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !! 

(शेष तीसरे भाग में)

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