"साक्षी ज्ञान स्वरूप" (भाग-2)
ॐ !! वंदे गुरु परंपराम् !! ॐ
आत्मा अविकारी है कि विकारी ? अब अविकारी आत्मा को निर्विकार बनाओ। क्या करके ? भजन करके, साधन करके ? ध्यान करके ? फिर ध्यान करके क्या करो ? ध्यान से जानो। यह मैं नहीं कहता कि ध्यान न करो। पर, आत्मा की असलियत को परखने के लिए ध्यान करो। आत्मा को अविनाशी बनाने के लिये ध्यान न करो। आत्मा को ठीक करने के लिए ध्यान न करो। आत्मा को ठीक से परखने के लिए ध्यान करो। यदि तुम इतना कर लोगे, तो तुम्हारा बेड़ा पार हो जाएगा। फिर तुमको यह नहीं कहना पड़ेगा कि गुरुजी ! जब हम मरने लगे, तो हमारा ख्याल रखना। आप हमारे तारने का इन्तजाम करना। जब चेला मर जाए और घर वाले रोएँ, तब गुरुजी कहें कि हमने तो चेले को अपने धाम बुला लिया है। फिर चेला यह कहे कि गुरुजी अब हमारी हालत खराब है; आप हमारे मोक्ष का इन्तजाम करें।
अरे महाराज ! गुरुजी का प्रवचन ठीक से सुन लो। गुरुजी मरने के दिन इन्तजाम नहीं करते; वे तो उसके पहले ही सब कर देते हैं। मरने के बाद का प्रलोभन उन्हीं मूर्खे के लिए है. जिन्होंने अभी भी नहीं समझा है। जिन्हें अभी तक निश्चय ही नहीं हुआ है। पक्का निश्चय हो ही नहीं रहा। तभी तो बार-बार तारने को कहते हैं। क्योंकि, अब उनको निराश तो करना नहीं है; इसलिए, हमें उनकी राहत के लिए कहना ही पड़ेगा कि कोई चिन्ता की बात नहीं; जब वे मरेंगे, तब हम उन्हें सच खण्ड ले जाएँगे। हम उनको परमधाम ले जायेंगे। हम उन्हें ब्रह्मलोक ले जायेंगे। क्योंकि, वे तो जा नहीं सकते; लेकिन, जाने की इच्छा है। वे अभी सचखण्ड में नहीं हैं। वे अभी बह्म में नहीं हैं या अभी ब्रह्म नहीं हैं। वह तुमने हम पर छोड़ा है, तो तुम्हारे मरने पर हम ही इन्तजाम करेंगे ।
यदि तुम अभी ही बह्म हो, अभी ही साक्षी हो, तो गुरुजी तुम्हें ब्रह्म कर देंगे ? ब्रह्मधाम क्यों पहुँचायेंगे ? तुम्हें ब्रह्म में क्यों ले जायेंगे ? अभी तुम कौन हो ? तुम अभी ब्रह्म ही हो। इसलिए, अपने अन्तःकरण की वृत्ति को समाहित करके एक बार जानो । यदि एक बार जान गए, तो फिर रोज चाहे सुबह-शाम भूलो, चाहे सो जाओ, यह ब्रह्म ज्ञान तुम्हारे हृदय में डेरा डाल लेगा; यह तुम्हें छोड़ेगा नहीं। जब जरूरत हो, तो इससे लाभ ले सकोगे ।
देहाभिमान तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ता था; जो कि आकस्मिक रूप से (एक्सीडेन्टली) हो गया था; जो धोखे में हो गया था। उसका पता भी नहीं था। अन्त में तो हम यह कहते हैं कि काँटे से काँटा निकालकर उसे फेंक देना चाहिए। पर, तुम क्या करते हो ? जब काँटा लग जाता है, तो उसे सुई से निकालते हो । जिस सुई से काँटा निकालते हो, उसको क्या करते हो ? फिर काम आने के लिए, तुम उसे अलमारी पर रख देते हो। तुम उसे पैर में ही तो नहीं घुसेड़े रहते हो ? काँटा निकालने के लिए ही सुई पैर में घुसेड़ते हैं। जितने गहरे पर काँटा चुभा होता है, उतने ही गहरे पर सुई भी घुसानी पड़ती है। ठीक इसी प्रकार, जितना गहरा तुम्हारा तादात्म्य देह से या वृत्ति से है, यदि उतना ही गहरा तादात्म्य एक बार ब्रह्म से हो जाए, तो कल्याण हो जाएगा।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !!
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