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शुक्रवार, 14 मार्च 2025

"वेदान्त की समाधि-जगत् मिथ्या" (भाग-1)


"वेदान्त की समाधि-जगत् मिथ्या" (भाग-1)

ॐ  !! वंदे  गुरु परंपराम् !! ॐ

गोस्वामी जी कहते हैं-

'सीय राममय सब जग जानी'।

भक्त अपने भगवान् के अलावा कुछ न देखे, यही भक्त की समाधि है। मन को रोकने की जरूरत नहीं है। भक्त की समाधि है कि वह भगवान् का ही रूप देखे। एक में जो दिखता है, वही मेरे प्रभु का रूप है। यही भक्त की समाधि है। ज्ञानी की समाधि है कि आत्मचैतन्य, द्रष्टा साक्षी, आत्मा और बहा के अतिरिक्त कोई पदार्थ नहीं है। एक चैतन्य आत्म-पदार्थ के अलावा कुछ नही है. ऐसा देखना है। जानी को ऐसा ही देखना है। यही जानी की सामाधि है। योगी की समाधि में, मन द्रष्टा को छोड़ कर किसी में न जाने पावे। किसी भी दृश्य में आपका मन न जाए। किसी दिखाई देने वाले या जानने में आने वाले किसी दृश्य में वृत्ति न जावे, तब समाधि होती है। योगी की समाधि, बड़ी झंझट वाली होती है। योगी को समाधि में, वृत्तियों को सब तरफ से लौटा कर चैतन्य में लीन करना होता है। जरा-सा भी व्युत्थान हुआ कि फिर गये जगत् में।

जिसके लिए जगत् में भगवान् के सिवाय कुछ और है ही नहीं; वह किससे विरोध करेगा-

'निज प्रभुमय देखहिं जगत्, केहिं सन करहिं विरोध'।

उसके लिये सारा दृश्य जगत्, उसके इष्ट का ही है। जो राम के भक्त है, उनके लिए सारा जगत् राममय है और जो कृष्ण के भक्त हैं, उनके लिए सारा जगत् कृष्णमय है। शिव भक्तों के लिए सारा जगत् शिवमय है। आपका जो इष्ट है, उसी को सब में देखो। इष्ट बिना सब भ्रष्ट है।

योगी की कठिनाई यह है कि उसे जगत् को भगवान्मय नहीं देखना है। उसके लिए सारा संसार जड़ है दृश्य है, लेकिन, उसे दृश्य से मन को हटाकर, द्रष्टास्वरूप में लीन करना होता है।

'तदा द्रष्ठः स्वरूपेऽवस्थानम्' ।

वेदान्ती की कठिनाई क्या है? उसे पहले अपने चेतन स्वरूप को पहचानना होता है। उसके लिए चेतन के अतिरिक्त और किसी दृश्य पदार्थ की सत्ता ही नहीं होती। वह जगत् को झूठा, ब्रह्म को सत्य और अपने को ब्रह्म जानता है। वह चैतन्य को ब्रह्म जानता है। ब्रह्म के अलावा कोई पदार्थ है ही नहीं। चेतन तत्त्व के अतिरिक्त, जो कुछ भी दिख रहा है, वह स्वप्न है। स्वप्नों की कोई सत्ता ही नहीं होती। ज्ञानियों के लिए, जगत् का मिथ्यात्व ज्ञान जरूरी है। यदि, ज्ञानी जगत् को झूठ नहीं जानेगा, तो फिर वह यह जगत् देखेगा। जब वह जगत् को झूठ देखेगा, तभी यह जानेगा कि ब्रह्म ही सत्य है।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !! 

शेष दूसरे भाग में

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