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शुक्रवार, 21 मार्च 2025

"तत्त्वमसि"


"तत्त्वमसि"

ॐ  !! वंदे  गुरु परंपराम् !! ॐ

'तत्त्वमसि' महावाक्य में दो पद आते हैं-तत् और त्वम् । तत् पद का और त्वम् पद का शोधन कासि सहावाक्य में दो का वाच्य और त्वम् पद का लक्ष्य क्या है ? त्वम् शब्द में अन्तकरण, वृत्ति और देह भी आती है और त्वम् में अन्तःकरण और वृत्ति का प्रकाशक साक्षी भी आता है। जब हम कहेंगे कि तुम साक्षी हो, तुम बहा हो, तो हम देह, इन्द्रिय और वृत्ति का बाघ करके, जो चिद् अंश है, उसको त्वम् शब्द कहते हैं।

उदाहरण के लिए घड़ा है। हम कहते हैं कि यह कभी नहीं मिटेगा। देखो ! यह शब्द का वाच्य घड़ा है और यह शब्द का लक्ष्य क्या है ? इस पद के दो अर्थ है- घड़ा भी है और मिट्टी भी है। जब हम कहते हैं कि यह नष्ट नहीं होगा, तब हमारा लक्ष्य मिट्टी है। घड़ा पद का वाच्य घट और लक्ष्य मिट्टी है। जब हम कहेंगे कि यह नष्ट नहीं होगा, तब हमारा ध्यान तत्त्व पर है। जब हम कहेंगे कि यह बचेगा नहीं; तब हमारा ध्यान वाच्य पर है, घड़े पर है। इसी तरह से, जब वेदान्ती यह कहे कि तुम मर जाओगे; तुममें दुःख-सुख हैं; तुम जन्मते-मरते हो, तुम जागते-सोते हो; तब उसका ध्यान बुद्धि, अन्तःकरण, वृत्ति और देह पर है। जब वह यह कहता है कि तुम निर्विकार हो, तुम चैतन्य हो, तब उसका उद्देश्य वृत्तियों के साक्षी से है।

हम त्वम् पद का शोधन कर लें। त्वम् यानी तुममें जो अनात्मा अंश है, तुममें जो कल्पित अंश है, उसका बाध करके; जो वाच्य अंश है, उसका त्याग करके; जो लक्ष्य अंश है, वह लक्ष्य चैतन्य है। यह जो तुम है, यह वही है जो सूर्य में है, चन्द्रमा में है, विश्व में है, ब्रह्माण्ड में है, वह ब्रह्म है। वही ब्रह्म तू है। उस ब्रह्म की एकता तुमसे करेंगे।

लेकिन तुम कौन हो ? शुद्ध किया हुआ तुम; कल्पित से हटा कर तुम हो। जब तक तुम मिले-जुले को तुम सुन रहे हो; बल्कि, वाच्य को ही जो लक्ष्य सुन रहा है, उसको जब हम कहेंगे कि तुम बह्म हो, तो बात जमेगी नहीं। इसलिए ध्यान के समय अपने साक्षीपन को स्पष्ट करो। गुरू जब कहेंगे कि तुम्हीं बह्य हो, तुम्हीं अविनाशी हो, तुम्हीं अनन्त हो, तुम्हीं अखण्ड हो, तुम्हीं निर्विकार हो, तुम्ही अचल हो और तुम्हीं सनातन हो; तब यह बात तुमको सच लगेगी। इसलिए, वेदान्त सुननेके पहले साक्षी साधना और चिद्भाव की अनुभूति करनी चाहिए। वेदान्त तभी अच्छा लगता है।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !! 

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