"अवधूत दत्तात्रेय" (भाग-1)
ॐ !! वंदे गुरु परंपराम् !! ॐ
परमपिता परमात्मा करुणा के अनन्त सागर हैं। ईश्वर के विधान से जल, थल और नभ में रहने वाले प्रत्येक जड़ चेतन प्राणी को भोजन, आवास और सुरक्षा के साधन सहज ही उपलब्ध हो जाते है और उनका जीवन चक्र बिना किसी विघ्न-बाधा के चलता रहता है।
मनुष्य परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति है उसे केवल भोग भोगने या रोटी कपड़ा और मकान के लिए नहीं बनाया गया है। इसके अतिरिक्त उसे ज्ञान के द्वारा सृष्टि के रहस्य को समझ कर भव सागर को पार करने की विशेष व्यवस्था की गयी है।
इस सम्बन्ध में पूज्य गुरुदेव कहते है आत्म तत्व का जिज्ञासु बडी सूक्ष्म बुद्धिवाला होता है वह विराट प्रकृति में दृश्यमान हो रही घटनाओं से शिक्षा ग्रहण कर इस संसार सागर को पार कर जाता है। यदि हम थोड़ी सी बुद्धि से भी अपने आसपास की वस्तुओं का निरीक्षण या परीक्षण करें तो पाएंगे कि सृष्टि की प्रत्येक रचना हमें प्रतिक्षण मौन उपदेश कर रही है। हम उनसे कोई शिक्षा ग्रहण करते है या नहीं यह हम पर निर्भर करता है?
श्रीमद्भागवत महापुराण के एकादश स्कन्ध के सातवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण उद्धव जी को आत्मज्ञान का उपदेश देते हुए राजा यदु और अवधूत दत्तात्रेय जी के प्रसंग का वर्णन करते हुए इस तथ्य को बहुत ही स्पष्ठ, सरल व रोचक ढंग से कहते है कि एक बार राजा यदु ने देखा कि एक त्रिकालदर्शी तरुण अवधूत ब्राह्मण निर्भय होकर विचर रहे हैं और यह प्रश्न किया कि हे ब्राह्मण! आप कर्म तो करते नहीं फिर आपको यह अत्यन्त निपुण बुद्धि कहाँ से प्राप्त हुई है? हम आपसे यह पूछना चाहते है कि आपको अपने आत्मा में ऐसे अनिवर्चनीय (जिसको शब्दों में वाणी द्वारा व्यक्त न किया जा सके) आनन्द का कैसे अनुभव होता है?
तब ब्रह्मवेत्ता श्री दत्तात्रेय जी ने कहा कि हे राजन मैंने अपनी बुद्धि से बहुत से गुरुओं का आश्रय लिया है, उनसे शिक्षा ग्रहण करके में इस जगत में मुक्तभाव से विचरता है। तुम उन गुरुओं के नाम और उनसे ग्रहण की हुई शिक्षाओं को सुनो।
पृथिवी वायुराकाशमापोऽग्निश्चंद्रमा रवि:।
कपोतोऽजागरः सिन्धुः पतङ्गो मधुकृद् गजः ॥ 33 ॥
मधुहरिणो मीन: पिङ्गला कुरोऽर्भक:।
कुमारी शरकृत् सर्प ऊर्णनाभिः सुपेशकृत् ॥ 34 ॥
एते मे गुरुवो राजन् चतुर्विंशतिराश्रिता:।
शिक्षावृत्तिभिरेतेषामन्वशिक्षमिहात्मनः॥ 35 ।।
यतो यदनुशिक्षामि यथा वा नाहुषात्मज ।
तत्तथा पुरुषव्याघ्र निबोध कथयामि ते ॥ 36 ॥
मेरे गुरुओं के नाम हैं:- पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, समुद्र, अजगर, कपोत, पतंगा, मधुमक्खी, हिरण, मछली, पिंगला, कुरर पक्षी, बालक, कुमारी कन्या, सर्प, बाण बनाने वाला ,मकड़ी, भ्रमर, हाथी, और भृंगी कीट।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !!
(शेष दूसरे भाग में)
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