"अकथ कहानी"
ॐ !! वंदे गुरु परंपराम् !! ॐ
"सुनहु तात यह अकथ कहानी। समुझत बनइ न जाइ बखानी।।"
गुरुदेव कहते हैं कि यदि किसी लम्बी यात्रा के दौरान कपड़े में कोई दाग - धब्बा लग जाए तो यह सोचने की जरूरत नहीं है कि वह दाग कहाँ, कैसे और क्यों लग गया ? बल्कि सोचने का ठीक ढंग यह है कि यह दाग जिसने मेरे कपड़ो की सारी शोभा को खराब कर दिया है उसे कैसे साफ किया जाए।
यदि हम यह सोचें कि ब्रह्म कैसे जगत बन जाता है या चेतन कैसे जड़ हो जाता है तो यह सोच हमें और अधिक भ्रमित कर देगी। अनादि काल से ही ऋषियों ने इस जटिल प्रश्न पर गहन चिन्तन किया है। भारत के 6 (षड्)आस्तिक दर्शन हैं (1) न्याय (2) वैशेषिक (3) योग (4) सांख्य (5) पूर्व मीमांसा (कर्म काण्ड) (6) उत्तर मीमांसा (वेदान्त) व नास्तिक दर्शन ( जैन व बौद्ध) तक Modern science of Energy & matter theory, Physical & metaphysical branches, Atom theory of matter, Big Bang theory, Quantum theory, Gas Particle, E=mc2 आदि सभी अपने-अपने ढंग, तर्कों व धारणा के आधार पर हमें इन जटिल प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत करते हैं। गोस्वामी जी के शब्दों में
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी”
अतः ठीक उपाय केवल यही है कि इस शब्द जाल में न उलझकर हमें इस जड़-चेतन की गांठ को खोलकर जड़ को जड़ और चेतन को चेतन समझ कर सभी दुविधाओं, संशयों और भ्रमों से मुक्त होना है। जिससे हमारा चित्त स्वस्थ हो जाए।
ईस्वर अंस जीव अबिनासी। चेतन अमल सहज सुख रासी॥
सो मायाबस भयउ गोसाईं। बँध्यो कीर मरकट की नाई॥
जड़ चेतनहि ग्रंथि परि गई। जदपि मृषा छूटत कठिनई॥
तब ते जीव भयउ संसारी। छूट न ग्रंथि न होइ सुखारी॥
- श्रीमद् रामचरितमानस (७/११७)
गुरु, शास्त्र और ईश्वर कृपा से जब जीव की जड़-चेतन ग्रन्थि (आत्मा-अनात्मा के नित्य-अनित्य) का विवेक (ज्ञान) हो जाता है तो वह इस संसार से वैसे ही विलग या न्यारा हो जाता है जैसे दूध से निकला हुआ मक्खन !
यह रहस्य रघुनाथ कर बेगि न जानइ कोइ।
जो जानइ रघुपति कृपाँ सपनेहुँ मोह न होइ॥११६ क॥
भावार्थ:-श्री रघुनाथजी का यह रहस्य (गुप्त मर्म) जल्दी कोई भी नहीं जान पाता। श्री रघुनाथजी की कृपा से जो इसे जान जाता है, उसे स्वप्न में भी मोह नहीं होता॥११६
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !!
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