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"परमात्मास्वरूप अगाध जल में ही वास्तविक सुख है"
ॐ !! वंदे गुरु परंपराम् !! ॐ
पूज्य गुरुदेव ने परमात्मा को अगाध जल, यानी गहरे और अनंत सागर की संज्ञा दी है। इसके विपरीत, संसार को स्वल्प जल या थोड़े-से पानी के रूप में वर्णित किया गया है। परमात्मा सुख का अनंत स्रोत है, जबकि संसार का सुख सीमित और अस्थायी है। यदि हमें सच्चा और स्थायी सुख चाहिए, तो हमें परमात्मा से जुड़ना होगा।
गुरुदेव ने इसे मछलियों के उदाहरण से समझाया है। मछलियाँ सागर या जल स्रोत की ओर तैरती हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि छोटे गड्ढों में सीमित पानी उनकी जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता। इसी प्रकार, मनुष्यों की स्थिति भी वैसी ही हो गई है। हम संसार के छोटे-छोटे सुखों में उलझ गए हैं, जबकि हमें उस अनंत स्रोत की ओर बढ़ना चाहिए जहाँ वास्तविक सुख है।
मछलियाँ अपने अस्तित्व के लिए हमेशा जल स्रोत की ओर तैरती हैं। वे जानती हैं कि गिरते पानी का प्रवाह उनके जीवन का आधार है। मछलियाँ पानी के प्रवाह के विपरीत दिशा में तैरने का प्रयास करती हैं, क्योंकि यह उनकी प्रकृति में है। इसी तरह, हमें भी अपनी साधना और प्रयासों को परमात्मा की ओर केंद्रित करना चाहिए, जो सुख, शांति और आनंद का स्रोत हैं।
संसार के सुखों की तुलना छोटे गड्ढों में भरे पानी से की गई है। यह पानी मछलियों को तात्कालिक जीवन प्रदान कर सकता है, लेकिन स्थायी रूप से उनकी सभी जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता। इसी प्रकार, धन, पद, प्रतिष्ठा और भौतिक सुख क्षणिक हैं। इनसे अस्थायी आनंद तो मिल सकता है, परंतु सच्चा सुख नहीं।
गुरुदेव ने मीन-मार्ग, यानी मछली की साधना का उल्लेख करते हुए कहा कि हमें भी मछलियों की तरह अपने जीवन के स्रोत की ओर बढ़ना चाहिए। मछलियाँ जिस तरह जल प्रवाह का अनुसरण करती हैं, हमें भी संसार के मोह से ऊपर उठकर परमात्मा के प्रति समर्पण करना चाहिए।
मनुष्य के पास विवेक और स्वतंत्रता है, जिससे वह यह निर्णय कर सकता है कि उसे किस दिशा में बढ़ना है। परंतु हम अक्सर संसार के मोह में फंस जाते हैं और क्षणिक सुखों के पीछे भागते हैं। यह हमारी नासमझी है कि हम उस स्थायी और असीम स्रोत को भूल जाते हैं, जो परमात्मा के रूप में हमारे भीतर विद्यमान है।
पूज्य गुरुदेव ने हमें समझाया है कि मनुष्य का जीवन तभी सफल होता है जब वह संसार के अस्थायी सुखों में उलझने के बजाय अपने वास्तविक लक्ष्य – परमात्मा की प्राप्ति – की ओर बढ़े। परमात्मा अगाध सागर है, जहाँ असीम और स्थायी सुख है। यह सुख हर स्थिति में उपलब्ध रहता है और समय, स्थान, या परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करता।
हमें मछलियों से प्रेरणा लेनी चाहिए, जो अपने जीवन के स्रोत की ओर निरंतर आगे बढ़ती हैं। अपने समय और ऊर्जा को केवल क्षणिक सुखों में न लगाकर हमें उस परम स्रोत से जुड़ना चाहिए, जहाँ से सच्चा सुख और शांति मिलती है। यही मानव जीवन की सच्ची सफलता है।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !!
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