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गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

"वेदान्त का उद्देश्य : सबमें साक्षी को ही एक जानना" (भाग-1)


"वेदान्त का उद्देश्य : सबमें साक्षी को ही एक जानना"

ॐ  !! वंदे  गुरु परंपराम् !! ॐ

जिस मिट्टी का तुमने कुछ बनाया है, यदि उसे बदलोगे, तभी उस मिट्टी से कुछ बना पाओगे। बाकी मिट्टी से, इसको तोड़े बिना भी बना सकते हो। इसी तरह से, एक ब्रह्म में सब रहता है; पर, एक साक्षी में, एक समय में, सब कुछ नहीं रहता। बहा में रहता है। पृथ्वी में यानी मिट्टी में, एक साथ मकान, दुकान, चबूतरा, घड़ा, ईंट, पेड़, पहाड़ सब रहते हैं। एक मिट्टी में ही तो ये सब रहते हैं। किन्तु, स्वल्प मिट्टी में, एक हिस्से में, एक समय में, दो चीजे नहीं रह सकती।

ब्रह्म में तो एक साथ ही सुषुप्ति भी है, जाग्रत भी है, जन्म भी है और मृत्यु भी है। कही मौत है, तो कहीं जीवन है। कहीं सो रहा है, तो कहीं जग रहा है। एक ही चैतन्य में कहीं नीद है, कहीं स्वप्न है, कहीं सुषुप्ति है, कहीं जन्म है और कहीं मरण है। यह सब एक ही चैतन्य में है। लेकिन, जो साक्षी में है, वही सोने में है। सब एक साथ है। पर, इस सोने में, इस जगह, एक समय पर, एक ही चीज रहेगी।

यों तो मिट्टी में ही सब रहते हैं। किन्तु, तुमने जिस मिट्टी का खिलौना बनाया है; तुम्हारी मिट्टी में जो खिलौना है; उस खिलौने को तोड़े बिना नया खिलौना नहीं बनेगा। इसी तरह से, ब्रह्म में तो एक साथ सब कुछ है; किन्तु, साक्षी में एक साथ सब कुछ नहीं है। जब जाग्रत है, तब स्वप्न नहीं और जब स्वप्न है, तब सुषुप्ति नहीं। इसलिए साक्षी में एक अवस्था ही एक समय पर रह सकती है; दो नहीं। लेकिन, जो यहाँ स्वप्न का और जाग्रत का साक्षी है, जो यहाँ बुद्धि का आश्रय है; वही और जगह है।

इसे फिर गहराई से समझिए। हमारे गहने का आश्रय सोना है; वह सोना ही और जगह के गहने का आश्रय है। आश्रय सोना ही है; लेकिन, यही सोना नहीं। आश्रय तो सोना ही है, परन्तु, 'यही' में जरा भेद हो जाता है। जो मिट्टी मकान का आश्रय है, वही घड़े का भी है; लेकिन, वही मिट्टी नहीं है। एक ही मिट्टी आश्रय है; पर, उतनी ही और वही नहीं। नहीं तो, दो चीजें मिट्टी में बनती ही नहीं। एक ही मिट्टी में मकान और घड़ा, एक ही समय में, बन ही नहीं सकते। इसका मतलब है कि एक ही जगह, एक ही मिट्टी में, घड़ा और मकान नहीं है।

साक्षी में, एक ही जगह स्वप्न और जाग्रत की दो अवस्थाएँ नहीं रह सकतीं। लेकिन, एक ही साक्षी में, भिन्न-भिन्न जगहों में, भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ रह सकती है। वही साथीले कूक एर्वत्र है; इसलिए, बह्य है। साक्षी क्या है? साक्षी बह्य है। इसलिए, ब्रह्म के नाते, उसी बहा वेतन में कहीं जाग्रत है. कहीं स्वप्न है और कहीं सुपप्ति है। कहीं जन्म है और कहीं मौत है। साक्षी को बह्य जरूर जानना है।

जो सोना अपने को अँगूठी समझता है, जो सोना अपने को नथनी समझता है; यदि उसी सोने की चूड़ी बनानी है, तो अँगूठी या नथनी को तोड़कर ही बनानी होगी। पर, यदि सोना बह्म की तरह अपने को व्यापक जानले यदि सोना यह जान ले कि वह उतना ही नहीं है जितना कि अँगूठी या नथनी में है, तो सारा सोना ही सोना है। अँगूठी, नथनी और चूड़ी सबका आश्रय सोना ही है।

साक्षी की दृष्टि से, मैं एक समय में सब-कुछ नहीं हूँ, पर, बह्य की दृष्टि से मैं इस समय ही सब-कुछ हूँ। तुम जब साक्षी होते हो, तो कभी स्वप्न के साक्षी होते हो, कभी जगत् के साक्षी होते हो। तुम कभी नींद के साक्षी होते हो, कभी समाधि के साक्षी होते हो। ऐसा क्यों है? क्योंकि, जब समाधि होगी, तभी तो समाधि के साक्षी कहोगे। जितनी देर समाधि नहीं है, उतनी देर समाधि के साक्षी नहीं हो। जितनी देर स्वप्न है, उतनी देर स्वप्न के साक्षी हो। पर, जब स्वप्न नहीं है, तो स्वप्न के अभाव के साक्षी कह सकते हो। स्वप्न के नहीं, स्वप्न के अभाव के साक्षी हो। जाग्रत के साक्षी हो। इसी तरह से, जैसे वहाँ स्वप्न के, जाग्रत के और निद्रा के साक्षी हो; वैसे ही यहाँ पर भी साक्षी है कि नहीं? यहाँ भी साक्षी है। इनके यहाँ भी साक्षी है। इनकी बुद्धि का, इनके मन का, इनकी देह का और इनकी वृत्तियों का साक्षी यहाँ है।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !! 

शेष दूसरे भाग में

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