"बौद्धिक समझ पर्याप्त नहीं" (भाग-1)
ॐ !! वंदे गुरु परंपराम् !! ॐ
यह जो ज्ञान है, यह हमारी बुद्धि का है या चेतन का है? दुनियां भर में कितने चेतन हैं? एक ही चेतन है। यह तुम्हें मंजूर है? बुद्धि, चेतन की मालकिन बन गई है और कहती है कि ज्ञान मेरा है। वह ज्ञान तुम्हारा है; इसलिए, उस देह को जानते हो। यह ज्ञान मेरा है; इसलिए, मैं इस देह को जानता हूँ। अब, ज्ञान यदि भगवान् का है, न तुम्हारा है, न हमारा है; तो सब किससे प्रकाशित हैं? यदि 'मैं' की मोहर हटा लो, तो प्रकाशक कितने हैं? प्रकाशक एक ही है।
'जगत प्रकास्य, प्रकासक रामू ।'
लोग 'मैं' पर ज्यादा जोर देते हैं। पर, कभी-कभी में, 'मैं' के विरोध में हूँ। क्योंकि, बाद में' को पहले पकड़ोगे, तो तुम अपने को कभी भी सर्वज्ञ, सर्वविद, सर्वात्मा नहीं मान कोसा नहीं हो सकता। जब वह 'मैं' के ख्याल में पकड़ लेता है, तो 'मैं' के द्वारा सब कुछ जाना ही नहीं जाता। इस बात को गहराई से समझिए। जब भी आप 'मैं' शब्द सोचते हैं, तो अपने-आप ही आपको यह महसूस होता है आप इसको जानते हैं, उसको नहीं जानते। जब यह बुद्धि सोचती है, तो निश्चित ही सीमित हो सोच पाती है; सीमित ही जान पाती है।
चेतन में सीमा नहीं है; चेतन बटा नहीं है-
'अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम्।'
परमात्मा, अविभक्त होता हुआ प्राणियों में विभक्त-सा लगता है। चेतन अविभाज्य है; अखण्ड है। ब्रह्म अखण्ड है, अनन्त है। जब वेतन बह्म है और अखण्ड है; तो क्या तुम्हारी देह में और मेरी देह में, दो चेतन होंगे? दो बल्ब होने से, दो रोशनी होने से, दो अभिमान हैं। दो रोशनी है, दो बल्ब हैं और दो अभिमान है। इस कमरे में मेरा उजाला है; उस कमरे में तुम्हारा उजाला है। रोशनी देखती है कि ये चीजें रखी है। पर, रोशनी में सत्य कितने हैं? रोशनी में एक ही सत्य है और वह है बिजली।
सत्य कितने हैं? एक। बिजली कितनी हैं? एक। और रोशनी कितनी हैं? अनेक हैं। बल्ब और कमरे कितने हैं? अनेक हैं। जाने-जाने वाले पदार्थ तो अनेक हैं। जानने के साधन भी-इन्द्रियों और देह-अनेक हैं। इनके अन्दर अन्तःकरण भी अनेक हैं और इनमें आभास भी अनेक हैं। बिजली अजन्मा है; रोशनी जन्मा है। रोशनी तो विद्युत का केवल स्फुलिंग है; केवल, आभास है। स्विच ऑन करो, प्रकाश है।
चेतन, ज्ञान के रूप में प्रकट होता है। चेतन, बुद्धि में ज्ञान के रूप में प्रकट होता है। चूंकि, बुद्धि में चेतन ज्ञान के रूप में प्रकट हुआ है, तो जितनी बुद्धियाँ हैं, उतने ही ज्ञान लगने लगे हैं। हर बुद्धि और जीव दावा करता है कि मैं जानता हूँ। लेकिन, जिसकी सत्ता से ये जाने जाते हैं, जिसकी सत्ता से वह चेतन एक है, वह तो कभी-भी नहीं सोचता कि 'मैं' प्रकाशता
ब्रह्म में इतना भी विचार नहीं है, ब्रह्म के पास इतनी भी अकल नहीं है कि वह यह भी सोच ले कि 'में ब्रह्म हूँ'। बाह्य के पास इतनी बुद्धि भी नहीं है कि वह यह सोच ले कि 'मैं' एक हूँ। बह्य के पास इतनी बुद्धि भी नहीं है कि वह यह सोच ले कि 'मैं' देह में हूँ। ब्रह्म यह भी नहीं सोचता कि 'मैं' एक हूँ या अलग-अलग हूँ।
शेष दूसरे भाग में
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !!
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