Total Blog Views

Translate

रविवार, 2 फ़रवरी 2025

"जीव, साक्षी को ब्रह्म जानकर तरता है" (भाग-1)


"जीव, साक्षी को ब्रह्म जानकर तरता है" (भाग-1)

ॐ  !! वंदे  गुरु परंपराम् !! ॐ

मैं साक्षी हूँ: यह अभिमानी एक नहीं है। इसीलिए, में साक्षी हूँ का जो अभिमान करता * में' साक्षी हूँ, यह अनुभव करता है, वह जीव है। जब यह जीव देखता है कि साक्षी एक है और मैं साक्षी ही हूँ, ऐसी अभिन्नता जब वह अनुभव करता है, तो इस जीव का कल्याण हो जाता है। वह बह्य हो जाता है। कौन तरता है? जीव तरता है। क्या जानकर तरता है? जीव साक्षी को ब्रह्म जानकर तरता है। जीव को साक्षी और साक्षी को ब्रह्म जानकर जीव तरता है। 'मैं' को साक्षी और साक्षी को सर्वत्र जानकर वह मुक्त हो जाता है।

आत्मा को जानने के विषय में, दो-चार और सरल सरल बातें बता दूँ। आप अपने अन्दर चेतनता को महसूस करिए। चेतनता आँख वाले को भी हो सकती है और बिना आँख वाले को भी हो सकती है। चेतनता महसूस करने के लिए किसी इन्द्रिय की गुलामी करने की आवश्यकता नहीं है। चेतनता के लिए किसी विचार की गुलामी नहीं करनी है। विचार करने के लिए तो शब्द की आवश्यकता होती है; लेकिन, चेतनता के लिए किसी भी चीज की जरूरत नहीं होती ।

आप ख्याल करेंगे, तो आपको चेतनता मालूम पड़ेगी। यदि, आप बैठे हैं, तो आपको बैठे होने का पता चलेगा। जब आप इस बात पर ध्यान देंगे कि श्वास चलती है कि नहीं, तो पता चलेगा कि श्वास चल रही है। आपका मन कहाँ है और वह क्या सोच रहा है? यदि आप ध्यान देंगे, तो आपको मन का पता चल जाएगा।

चेतनता महसूस करने के लिए बहुत कठिनाई नहीं है। थोड़ीसी कठिनाई भी इसलिए है कि आप सदा ही बाहर के ही चिन्तन में भटकते रहते हैं, नहीं तो आत्मानुभव जैसा आसान कुछ भी नहीं है। जगत् का अनुभव किसी अन्य बात के आधीन है। स्वप्न का अनुभव भी किसी अन्य बात के आधीन है। सभी अनुभव, किसी न किसी बात के आधीन हैं। पर, मेरी चैतन्यता का होना; मेरे साक्षीपने का होना; किसी के आधीन नहीं है। साक्षी स्वयं प्रकाश है।

शुद्ध चैतन्य, साक्षी, आत्मा में जीव भाव की भ्रान्ति क्यों हो गई? जो साक्षी, निर्विकार और चैतन्य है, उसमें जीवभाव की भ्रान्ति कहाँ से हो गई और क्यों हो गई ? यह समझने की कोशिश करें कि अज्ञान का आवरण कब और कैसे आ गया ?

साक्षी-तत्त्व में भ्रम नहीं होता। आत्म-तत्त्व में भ्रम नहीं होता । आत्मा के विषय में जीवों को भ्रम है। आभास को भ्रम है। चिदाभास को भ्रम है। जैसे, बिजली को अपने विषय में कोई भ्रम नहीं है; लेकिन, रोशनी को बिजली के विषय में और अपने विषय में भ्रम है। रोशनी को पता नहीं है कि बिजली यही है। रोशनी को पता नहीं है कि बिजली से अलग उसकी कोई हस्ती नहीं है। रोशनी को यह भी पता नहीं है कि एक ही रोशनी सब जगह प्रकाशित है। बिजली के सिवाय किसी और का प्रकाश नहीं है। प्रकाश किसी जगह भी हो, बिजली का ही है और एक ही बिजली का है। फिर भी, प्रकाश अलग-अलग लग रहे हैं। अलग-अलग लगने पर भी, अलग-अलग होने पर भी, वे एक से जुदा नहीं हैं।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !! 

शेष दूसरे भाग में

"To read this blog, click on the link given above 👆."

इस ब्लॉग को पढ़ने के लिए ऊपर दिए गए 👆 लिंक पर क्लिक करें।

"You can read this blog in any language. All you need to do is click on the translate button provided at the top left corner of the page. By clicking it, you can read it in your preferred language."

आप इस ब्लॉग को किसी भी भाषा में पढ़ सकते हैं आपको बस इतना करना है कि पेज के ऊपर बायें हिस्से में ट्रांसलेट का बटन दिया गया है। आप उसे क्लिक कर के अपनी मनपसंद भाषा में इसे पढ़ सकते हैं।


Kindly follow, share, and support to stay deeply connected with the timeless wisdom of Vedanta. Your engagement helps spread this profound knowledge to more hearts and minds.


#vedantaphilosophy #AdiShankaracharya #advaita #advaitavedanta #hinduism #hindu #sanatan #sadhanapath #sadhanpath #sadguru #meditation #swamiparamanand #swamiparmanandgiri #yugpurush #swami #VedantaWisdom #yugpurushswamiparmanandgiri  #sadhanapathofficial  #insight #wise #wisdom #wisdomquotes  #oneness  #humanity  #SpiritualJourney #DivineKnowledge #SacredTeachings #InnerPeace #SelfRealization #TimelessWisdom #ConsciousLiving #SpiritualAwakening