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सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

"ब्रह्म होना नहीं पड़ता"

"ब्रह्म होना नहीं पड़ता" (भाग-1)

ॐ  !! वंदे  गुरु परंपराम् !! ॐ

व्यावहारिक रूप में भले ही तुम्हारा इष्ट कोई हो; पर परमार्थतः तो तत्त्व एक है, स्वरूप एक है। जैसे हम शरीरों से तो जुदा-जुदा और अलग-अलग तरह के हैं; पर, हम सबके भीतर का प्रभु एक ही है; जिसे मैं जानूँगा और जिसे तुम जानोगे । जो तुम्हारा आत्मा, वह मेरा आत्मा, जो तुम्हारा साक्षी, वह मेरा साक्षी; जो तुम्हारे मन का आधार होगा, वही मेरे मन का भी आधार होगा; वे तो दो नहीं होंगे, सर्वाधार, सर्वाधिष्ठान तो एक ही होगा।

हम बहुत हो सकते हैं; पर, हमारा स्वरूप, हमारा मालिक एक ही है। इसी तरह भगवान् के रूप भी बहुत हैं, अवतार बहुत हैं, देवी-देवता बहुत हैं; पर, जो इन सबके पीछे परमसत्य है, वह परमात्मा एक ही है। वही देवी के रूप में है, वही कृष्ण के रूप में है, वही राम के रूप में है और वही किसी अवतारी पुरुष के रूप में है। परमात्मा बहुत नहीं है; वह तो एक ही है।

सन्त महात्मा अनेक है। लेकिन, जिस पर जिसकी श्रद्धा होती है, वह उसे ही सुनता है। कोई मुझसे वेदान्त सुनता है और कोई किसी अन्य सन्त से वेदान्त सुनता है। पर, वेदान्त सुनने के बाद जिसे पाते हैं; वह परम तत्त्व क्या और-और होगा ? गुरू अनेक हो सकते है, उनके उपदेश के ढंग भी अनेक हो सकते हैं, लेकिन, वेदान्त द्वारा प्रतिपाद्य जो परमात्मा है, वह ब्रह्म एक ही है। तुम उस ब्रह्म से कितनी दूर हो और वह तुमसे कितनी दूर है ? कोई दूरी नहीं है। बस, यही तुम जानो ।

बाहर से कुछ पाने का ख्याल हटाकर, कुछ करके पाने का ख्याल हटाकर, अपने अन्दर के चित् तत्त्व को जानो । क्या धन इकट्ठा करके तुम कुछ बड़े हो जाओगे, महान् हो जाओगे और भगवान् हो जाओगे ? तुम और अच्छा शरीर पा लो तो भगवान् नहीं हो सकते, तुम अपार धन पा लो, तो भगवान् नहीं हो सकते। कुछ भी पा लो, तो भगवान् नहीं हो सकते । तुम किसी करामात से या सिद्धि से भगवान् नहीं हो सकते। भगवान् जो है, उसे जानकर ही तुम भगवान् हो सकते हो । हम यह नहीं मानते कि तुम करामात और सिद्धि के बल पर भगवान् हो सकते हो ।

यह तो सब माया का रूप है। भगवान् तो सबमें एक है। तुम भी यदि आवरण हटा दो, तो भगवान् हो। तुम यह ऊपर का आडम्बर हटा दो, तो भगवान् हो। तुम कुछ पा के भगवान् नहीं हो सकते । सब कुछ हटाकर ही भगवान् हो सकते हो । तुम कुछ भी हो सकते हो; लेकिन, भगवान् नहीं हो सकते । भगवान् तो तभी हो सकते हो; जब तुम कुछ न हो । अच्छे वक्ता हो जाओगे, बोलने की ताकत आ जाएगी; तो भगवान् हो जाओगे ? बोलने वाले भी भगवान् नहीं हो सकते। बोलना तो अभ्यास की बात है और भगवान् की देन है। लेकिन, चित् तत्त्व तो सबके भीतर है।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !! 

शेष दूसरे भाग में

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