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मंगलवार, 4 मार्च 2025

"चिदात्म तत्त्व, अचल" भाग-1


"चिदात्म तत्त्व, अचल" भाग-1

ॐ  !! वंदे  गुरु परंपराम् !! ॐ

'अचलोऽयं सनातनः'।

चिदात्म तत्त्व अचल है। वह न घुसता है और न निकलता है। वह न तो जन्मता है और न ही मरता है। वह परिवर्तनशील नहीं है। वह न तो सोता ही है और न जगता ही है। इसीलिए, ज्ञान आज तक सोया नहीं और आज तक जागा भी नहीं। यदि, ज्ञान सो जाता, तो सोने का ज्ञान भी किसे होता ? यदि, ज्ञान पैदा होता, तो पैदा हुए ज्ञान का ज्ञान किसे होता है? ज्ञान के पैदा होने को, ज्ञान के विनष्ट होने को, जो जानता है, वही नित्य ज्ञान है, स्वरूप ज्ञान है, मूल ज्ञान है, यथार्थ ज्ञान है और वही ब्रह्म है। उस ज्ञान की कभी उत्पत्ति नहीं होती और विनाश नहीं होता। आत्मज्ञ पुरुष, जो अपनी आत्मा को ही आत्मा जानता है, वह अपने-आप में, ज्ञान के अभाव की कल्पना कभी नहीं करता। अपने-आप में न तो ज्ञान आ ही सकता है और न जा ही सकता है।

चेतन के बल पर ही चिदाभास हुआ और गया। ज्ञान हुआ और ज्ञान खो गया। ऐसे सारे ज्ञान पैदा होते रहते हैं और नष्ट होते रहते हैं। लेकिन, चित्-तत्त्व न तो पैदा ही होता है और न विनष्ट ही होता है। वही ब्रह्म है; वही तुम हो। अपनी आत्मा को जानो । इन्द्रियों के स्तर पर भी तुम्हीं ज्ञान हो। बुद्धि के स्तर पर और मन के स्तर पर भी तुम्हीं ज्ञान हो। सुषुप्ति और समाधि के स्तर पर भी तुम्हीं ज्ञान हो। ज्ञान में जो समाधि हो; ज्ञान में जो सुषुप्ति हो और जिस ज्ञान में उत्पत्ति और विनाश हो; वह सब कल्पित ज्ञान है। एक ही ज्ञान यथार्थ है, जो कभी पैदा ही नहीं होता और कभी मरता भी नहीं है। जो न जन्मे, न मरे; न आवे न जावे और न कभी बदले; वही बह्य है।

चल का पता अचल से चलता है, यहाँ तक तो ठीक है। पर, चल के कारण, अचल अपने को चल मान ले, यह ठीक नहीं है। बात समझ में नहीं आयी ? कभी-कभी ऐसा भी होता है कि आप जिस गाड़ी में बैठे हैं, उसके बगल वाली गाड़ी चल पड़ती है; तो लगता है कि हमारी गाड़ी चल पड़ी है। क्या ऐसा आपको भी लगता है? बस, यहाँ ऐसा ही है। तुम्हारे पास की गाड़ी चलती है और तुम्हें लगता है कि तुम चल पड़े।

वृत्ति चल पड़ी, मन चल पड़ा, उनके चलने से तुम्हें लगना चाहिए था कि तुम अचल हो। पर, लगता यह है कि जो चलता है, वह तो स्थिर है और हम चल पड़े हैं। ऐसा लगता है कि हमारी गाड़ी चल पड़ी है और तुम्हारी खड़ी है। जबकि हमारी गाड़ी तो खड़ी है, वह चल नहीं रही है, पर, पड़ौस की गाड़ी चल रही है, बगल वाली गाड़ी चल रही है। दृश्य चल रहा है; दृष्टि चल रही है; विषय चल रहा है और तुम अचल हो। पर, तुम्हारी नजर तो चल में है, इसलिए, चलने के कारण यह समझना मुश्किल है कि तुम अचल हो। वह चली, तो उसके कारण लगा जैसे कि हम चल पड़े हैं। हम चले नहीं, बिलकुल वहीं खड़े हैं: पर, लगता है कि हम चल पड़े हैं।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !! 

शेष दूसरे भाग में

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