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बुधवार, 5 मार्च 2025

"चिदात्म तत्त्व, अचल" भाग-2


"चिदात्म तत्त्व, अचल" भाग-2

ॐ  !! वंदे  गुरु परंपराम् !! ॐ

जो लोग चेतन को अचल ही नहीं जानते, वे जन्म-मरण से क्या छूटेंगे? जब चेतन जीते में ही नहीं चलता, ऊपर-नीचे नहीं जाता; तो मरने पर निकल जाएगा क्या? आप जिस वृत्ति के चलने से चलते थे, जिस वृत्ति के अचल होने से अपने को अचल मानते थे; ये चलना और अचल होना दोनों ही वृत्ति के धर्म थे। चेतन तो अचल ही है। जिस वृत्ति के कारण जीव का निकलना और दूसरे शरीर में प्रवेश करना मानते थे या स्वप्नावस्था में और जाग्रतावस्था में जाना मानते थे; वहाँ वृत्ति ही स्वप्नावस्था और जाग्रतावस्था में तथा एक शरीर से दूसरे शरीर में आती-जाती रहती है। यह परिवर्तन वृत्तियों का है। यह साक्षी या आत्मा का परिवर्तन नहीं है। इसीलिए, जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति भी वृत्ति की ही अवस्थाएँ है, बुद्धि की अवस्थाएँ है।

चैतन्य सोता नहीं है। चैतन्य की सुषुप्ति नहीं होती और चैतन्य की समाधि भी नहीं होती। चैतन्य की जाग्रतावस्था भी नहीं होती और चैतन्य की स्वप्नावस्था, सुषुप्तावस्था भी नहीं होती। ये बुद्धि की ही अवस्थाएँ होती है। साक्षी तो सब अवस्थाओं में एक ही होता है। स्वप्न, सप्ति, जाग्रत और समाधि में, जब वृद्धि वृत्ति शान्त होकर समाधि में लय होती है, तब भी साक्षी वही होता है. जो स्वप्नों का साक्षी होता है। वही याद करता है कि सुप्ति हुई थी, जाग्रत हुआ था और समाधि हई थी। ये सब साक्षी के सहारे ही हुए थे। साक्षी ही है जो कुछ नहीं हुआ।

साक्षी थर्ड पर्सन है कि फर्स्ट पर्सन है? वह कोई और है कि तुम ही हो? क्या वह भगवान् है तुम नहीं हो ? क्या साक्षी भगवान् है, तुम नहीं हो? क्या साक्षी राम है? क्या कुम राम हो ? अब राम की जरूरत तो नहीं पड़ेगी ? मरते समय राम को तो नहीं बुलाओगे ? कई लोग कहते हैं कि मरते समय राम-राम की याद करो। हम कहते हैं कि मरते समय जो राम की याद करे, वह भी अज्ञानी है।

'भला हुआ हरि बीसरा, सिर से टली बलाय। 
जैसे के तैसे रहे, अब कुछ कहा न जाय ।।'

क्या अब हम भगवान् को पुकारेंगे कि मरते समय आ जाओ ? हम साक्षी है। हम क्यों कहेंगे कि आप हमें साक्षी बनाने आ जाओ ? वह कौन है, जो अब साक्षी को और कुछ करने आएगा? वह कौन है, जो अन्तर्यामी चैतन्य को, साक्षी को, मैं को और कुछ करने आएगा? मैं जो खुद हूँ, अब मुझ साक्षी को तारने कौन आएगा? मुझ साक्षी को, मुझ बह्य को मरते समय कौन मुक्त करेगा ? अभी और मरते समय में साक्षी क्या होगा ? जो जन्म में साक्षी, जवानी में साक्षी, मृत्यु में साक्षी, जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और समाधि में साक्षी है, इस साक्षी को और कुछ करने के लिए क्या साधन है? वास्तव में कोई साधन नहीं है।

क्योंकि-

'यह गुन साधन तें नहि होई'।

यह साधन का विषय नहीं है। यह तो स्वभाव सिद्ध है। यह स्वभाव से ही है। लेकिन, तुम यह जानना नहीं चाहते हो, तुम तो करना चाहते हो। दुर्भाग्य तो यही है कि ज्ञानी गुरुओं के पास भी लोग करने आते हैं, सुनने नहीं आते। हम कहते हैं कि तुम ज्ञानी गुरुओं के पास जाकर केवल सुनो और ईमानदारी से सुनो। तुम्हें कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। यह सुनना ही बहुत बड़ा करना है।

'जाका हृदय शुद्ध है खोज शब्द में लेय'।

अपने को शब्द में खोज ले। सत्य को शब्द में खोजो। शब्द में सत्य छिपा है। साक्षी शब्द में साक्षी तत्त्व, साक्षी तत्त्व में साक्षी भाव, निर्विकल्प शब्द में निर्विकल्प तत्त्व और निर्विकार शब्द में निर्विकार चेतन का अनुभव छिपा है। उसे शब्द के सहारे खोज लो।

निर्विकार शब्द का क्या मतलब होता है? जिसमें विकार न हो। अब, विकार तो तुम्हें दिख रहे हैं; विकार मालूम पड़ रहे हैं। जब विकार मालूम पड़ रहे हैं और ब्रह्म को या साक्षी को निर्विकार कहा है; तो इसका मतलब यह है कि जिनमें विकार हैं, वे साक्षी नहीं है. यह तो साक्ष्य है। यह तो जाना जाता है। विकार जाने जाते हैं; लेकिन, जो जानता है, उनमें कौन-सा विकार है? जो प्रकाशता है, उसमें कौन-सा विकार है? प्रकाशक और चैतन्य निर्विकार हैं। अहंकार सीमित है; बुद्धि सीमित है और देह सीमित है। यह चैतन्य कहाँ रहता है, जो इसे सीमित कहते हो? वृत्तियाँ चलती हैं, चेतन कहाँ चलता है? वृत्ति के चलने से चेतन चलता लगता है।

'अचलोऽयं सनातनः ।'

यह चेतन अचल है।


ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !! 


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