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रविवार, 2 मार्च 2025

'मैं' से मुक्ति (भाग-2)


'मैं' से मुक्ति (भाग-2)

ॐ  !! वंदे  गुरु परंपराम् !! ॐ

अब, जरा-सा इस बात पर ख्याल कर लीजिए कि अंहकार वृत्ति का त्याग कर दिया जाए: अहं वृत्ति का त्याग कर दिया जाए। लोहे को नहीं त्यागना है। लोहा रहे भी और जला भी दे; लेकिन, यह कहे कि उसने नहीं जलाया है। ये दाहकत्व उसका नहीं है; उसमें तो है; लेकिन, यह जलाना उसका नहीं है। ऐसे ही, ज्ञान तो मेरे में है; पर, ज्ञान मेरा नहीं है। ज्ञान तो परमात्मा का है।

'अग्निर्यथैको भुवनं प्रविष्टो रूपं रूपं प्रतिरूपो बभूव । 
एकस्तथा सर्वभूतान्तरात्मा रूपं रूपं प्रतिरूपो बहिश्च ।'

यह उपनिषद् का मन्त्र है। मेरा मनगढ़न्त मन्त्र नहीं है। दुर्भाग्य है कि हिन्दू लोग उपनिषदों को पढ़ना ही भूल गए हैं। कथा करने वाले कथावाचक, उपनिषद् नहीं देखते । वह प्रतिरूप भी है और प्रतिरूप से भिन्न भी है। लोहा न रहे या तवा न रहे; तो अग्नि तो है। इस तरह से एक चैतन्य परमात्मा की ही चैतन्यता सबमें है।

'सब कर परम प्रकासक जोई'।

उसके अलावा कोई द्रष्टा नहीं है। उसके सिवाय कोई जानने वाला नहीं है।

जलाने वाली तो आग है; पर, वह जलाती माध्यम से है। इसीलिए, माध्यम जलाने का दावा करता है। जलते तो हैं आग से, जलाता है लोहा; जलते हैं आग से, जलाता है पानी; जलते हैं आग से, जलाती है लकड़ी; जलते हैं आग से, जलाता है कोयला। सब जगह कौन जलाता है? आग जलाती है। जलाने वाले का दावा कौन करता है? लोहा, लकड़ी, कोयला, तेल और बत्ती। सब जलाने का दावा करते हैं। जलाने की क्षमता किसकी है? वह तो आग की है।

ज्ञान-क्षमता, चैतन्य-क्षमता है और प्रकाशक ढेर सारे बैठे हैं। प्रकाशक क्षमता किसकी है? प्रकाश तो एक ब्रह्म का ही प्रकाशक अनेक हैं। इसीलिए'मैं' ब्रह्म हूँ; 'मैं' बहा हूँ; मैं बह्म हूँ। प्रश्न उठता है कि कितने बह्म हैं? यदि तुम बह्य हो और मैं ब्रह्म हूँ, तो जिसमें 'मैं' है और ब्रह्म है, वह सबका प्रकाशक नहीं है? यदि तुम ब्रह्म हो, तो सबके प्रकाशक नहीं हो। कोई भी 'मैं' सबका प्रकाशक नहीं है और सबके प्रकाशक के पास कोई 'मैं' नहीं है। 'मैं' के पास सर्व प्रकाशकत्व नहीं है। 'मैं' के पास सर्व का प्रकाशक है। जो सर्व का प्रकाशक है, वही प्रकाशक मेरे'मैं' में नहीं है? सर्व का प्रकाशक 'मैं' में है पर,'मैं' से यदि कोई सर्व प्रकाशक बनना चाहे, तो कोई नहीं बन सकता। सर्व प्रकाशक सब में है।

हमारे गुरुदेव, मन्त्र देते समय कभी-कभी यह बात कहा करते थे कि जिसमें यह सब है; जिस करके यह सब है और जिस करके यह सब देखा और जाना जाता है; वह सबमें है। जिसमें सब है; वह सबमें होकर सबको जानता है कि मुझमें होकर सबको जानता है? वह मुझमें होकर सबमें उजेला करता है कि सबमें होकर सबको उजेला करता है? सबमें होकर सबको जलाता है कि एक जगह होकर सबको जलाता है? बिजली सबमें होकर सब जगहों को प्रकाशित करती है कि एक बल्ब में होकर सबको प्रकाशित करती है?

एक अन्तःकरण में होकर बह्म सबको नहीं प्रकाशता। क्या ज्ञान की बपौती मेरे अन्दर ही है और मैं सबका प्रकाशक हूँ, ठेकेदार हूँ ? भगवान् ने सर्व के प्रकाशक का ठेकेदार किसी को नहीं बनाया। एक भी ठेकेदार सर्व का प्रकाशक नहीं है; केवल परमात्मा ही सर्व का प्रकाशक है। कोई नया सर्व प्रकाशक नहीं है। न 'मैं' हूँ और न 'तू' है। भगवान् राम यदि व्यक्ति हैं, तो वे भी सबके प्रकाशक नहीं हैं। यदि, राम व्यक्ति हैं, तो वे भी सब कुछ नहीं जानते। यदि वे राम हैं तो उनके पास बुद्धि नहीं है, लेकिन, वे सर्वत्र हैं।

इसीलिए-

'राम ब्रह्म परमारथ रूपा। अविगत अलख अनादि अनूपा।'

'मैं' की मोहर हटा दो। यह भाषा ही मत सोचो कि 'मैं' प्रकाशता हूँ। जब कहोगे कि 'मैं' प्रकाशता हूँ, तो तुम्हारे दिमाग में आएगा कि मैं सबको और सब जगह तो नहीं प्रकाश रहा। बुद्धि के द्वारा जानना चाहते हो कि बम्बई में क्या हो रहा है? बुद्धि के द्वारा जानना चाहते हो, इन्द्रियों के द्वारा जानना चाहते हो कि वहाँ कौन खड़ा है? वह सब इस जगह से जानना चाहते हो ? यहाँ से तो उतना ही जानोगे, जितनी तुम्हारी सामर्थ्य है। जितने भी वाट का बल्व होगा, उतना ही प्रकाश होगा। बुद्धि द्वारा जानने की तो एक सीमा है। एक ही चैतन्य सबमें भासता है।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !! 

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