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शनिवार, 5 अप्रैल 2025

वेदान्त क्या है?


वेदान्त क्या है?

ॐ  !! वंदे  गुरु परंपराम् !! ॐ

अद्वैत वेदांत भारतीय आध्यात्मिकता और दर्शन का एक अद्वितीय स्तंभ है, जिसे आदि शंकराचार्य (788–820 ईस्वी) ने पुनर्जीवित किया और व्यवस्थित रूप दिया। यह दर्शन उपनिषदों, भगवद गीता, और ब्रह्म सूत्रों पर आधारित है, जिन पर शंकराचार्य ने विशद भाष्य लिखे। अद्वैत वेदांत का मूल सिद्धांत यह है कि ब्रह्म ही परम सत्य है, आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं है, और यह संसार माया (भ्रम) के कारण वास्तविक प्रतीत होता है। 

शंकराचार्य ने अपनी कृति विवेकचूड़ामणि में स्पष्ट किया कि "ब्रह्म सत्य है, जगत मिथ्या है और जीवात्मा वास्तव में ब्रह्म के अतिरिक्त कुछ नहीं है।" यह दर्शन मानता है कि अज्ञान (अविद्या) के कारण व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप को नहीं पहचान पाता और इस भ्रम से मुक्ति केवल ज्ञान योग द्वारा संभव है। अद्वैत वेदांत के अनुसार, आत्मा निर्गुण, निराकार, और शुद्ध चेतना है, जो जन्म और मृत्यु से परे है। इस आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए श्रवण (सुनना), मनन (चिंतन), और निदिध्यासन (ध्यान) को प्रमुख साधन माना गया है। 

शंकराचार्य ने गुरु की भूमिका को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया और गुरु स्तोत्र में कहा, "गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं; वही परम सत्य हैं।" उन्होंने अपने भजनों और ग्रंथों में सांसारिक मोह से ऊपर उठकर आत्म-साक्षात्कार की प्रेरणा दी, जिसे भज गोविंदम् में स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया है। अद्वैत वेदांत केवल एक दार्शनिक अवधारणा नहीं, बल्कि एक व्यावहारिक जीवन शैली है, जिसमें आत्म-विचार, वैराग्य, धर्म पालन, और ध्यान को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। 

शंकराचार्य ने वेदांत को केवल एक बौद्धिक विमर्श तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे एक आत्मानुभूति पर आधारित जीवंत परंपरा में परिवर्तित किया, जिससे व्यक्ति मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त कर सकता है। उनके योगदान में उपनिषद, भगवद गीता और ब्रह्मसूत्र पर भाष्य, विवेकचूड़ामणि, उपदेश साहस्री, और भज गोविंदम् जैसे महान ग्रंथ शामिल हैं, जो आज भी वेदांत दर्शन के मार्गदर्शक हैं। अद्वैत वेदांत सम्पूर्ण विश्व के लिए एक शाश्वत और सार्वभौमिक सत्य प्रस्तुत करता है, जो आत्मा की स्वतंत्रता, आध्यात्मिक जागरूकता, और परम आनंद की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।

।।ॐ शान्ति शान्ति शान्ति।।