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शनिवार, 30 नवंबर 2024

" वेदान्त हमें क्या सिखाता है।"


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" वेदान्त हमें क्या सिखाता है।" 

ॐ !! वंदे गुरु परंपराम् !! ॐ

भगवान श्रीकृष्ण गीता के विभूति योग नामक दसवें अध्याय में कहते है अध्यात्म विद्या विद्यानां (गीता - 10/32) अर्थात विद्याओं में मैं अध्यात्म (वेदान्त) विद्या हूँ। Among Sciences I am the Science of self. भगवान श्रीकृष्ण के इसी श्लोक की व्याख्या करते हुए पूज्य गुरुदेव हमें बताते हैं कि वेदान्त विद्या की विशेषता क्या है? जिसके कारण आत्मा और परमात्मा की एकता का बोध करवाने वाले अद्वैत दर्शन को सर्वोच्च विद्या, ब्रह्म विद्या, तत्व ज्ञान या अमृत कहा जाता है। जैसे किसी प्रकाशित दीपक को देखने के लिए किसी दूसरे दीपक की जरूरत नहीं है वैसे ही वेदान्त ज्ञान किसी कल्पना विश्वास अथवा मान्यता पर आधारित नहीं है इसलिए अद्वैत दर्शन विश्व में प्रचलित सभी दर्शनों व धर्मों से विलक्षण व अद्वितीय है।

वेदान्त हमें मरना नहीं, अमर बनना सिखाता है और जीवन को परम पवित्र, पावन व शान्ति से परिपूर्ण बनाता है।

वेदान्त हमें व्यापक आत्मा-परमात्मा का बोध करवा के हमारी काम, क्रोध और लोभ रुपी संकुचित वृत्तियों को नष्ट कर देता है।

वेदान्त हो स्वर्ग के दिव्य 'भोगों का लालच नहीं देता बल्कि स्वर्ग को ही धरती पर उतार देता है। 

वेदान्त सृष्टि के सभी प्राणियों में एक अखण्ड आत्मा  का बोध (दर्शन) करवा कर सभी में परस्पर प्रेम व सद‌भावना का संचार करता है और द्वेष, घृणा व द्वैतभाव रूपी अज्ञानता का समूल नाश कर देता है।

वेदान्त संसार को पाप व दुःखों का घर नहीं बताता और न ही निराशावाद का उपदेश देकर हमें जड, आलसी व भीरु नहीं बनाता है बल्कि अज्ञानता और प्रमाद का नाश करते हुए निष्काम भाव से कुशलतापूर्वक कर्म करने का निर्देश देता है जैसे युद्ध से भाग रहे क्षत्रिय अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश देकर कर्तव्य कर्म में नियोजित (संलग्न) कर दिया।

वेदान्त ऊंच-नीच और भेदभाव से भरे हुए लौकिक व्यवहारों के रहते हुए भी बुद्धि से ऊंच-नीच का भेदभाव सदा के लिए समाप्त कर देता है।

वेदान्त उपाधि भेद अज्ञान व अविद्या से दृष्टिगोचर होने वाले कल्पित उपाधि भेद को मिटाकर हमें सर्वत्र एकरस अखण्ड अभेद अविनाशी ब्रहम तत्व का बोध करवाता है और जि‌ज्ञासु के सभी संशयों, भ्रमों का नाश करके उसे अपने सच्चे स्वरुप (शुद्ध अहम) में प्रतिष्ठित कर सदा-सर्वदा के लिए मुक्त कर देता है।

इस का सार संक्षेप में यह है कि वेदान्त सृष्टि नहीं दृष्टि बदल देता है। इसीलिए वेदान्त विद्या सब विद्याओं सिरमौर या शिरोमणि है!

ॐ शांति शांति शांति !! 

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