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रविवार, 22 दिसंबर 2024

विनय - पत्रिका (भाग-1)


विनय - पत्रिका (भाग-1)

ॐ!! वंदे गुरु परम्परा !! ॐ

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन की जिज्ञासा का समाधान करते हुए गीता के विभूति योग नामक दसवें अध्याय में कहते हैं कि," संसार की सब विद्याओं में सर्वश्रेठ अध्यात्म (वेदान्त) विद्या मैं हूँ"। अर्थात वह विद्या जो साधक की अनादि काल से चली आ रही "अविधा" का नाश करके उसे सदा - सर्वदा के लिए मुक्त कर देती है। अध्यात्म विद्या का बोध केवल श्रोत्रिय ब्रम्हनिष्ठ सद्‌गुरु के श्रीमुख से निसृत उपनिषद् महावाक्यों के उपदेश से होता है। इसलिए वेद का प्रतिज्ञा वचन है "ऋते ज्ञानात् न मुक्तिः - अर्थात ज्ञान के बिना मुक्ति सम्भव नहीं है। सम्यक मार्गदर्शन व साधना के अभाव में हम मानव शरीर पाकर भी "आत्म कल्याण" से वंचित रह जाते हैं। परम पूज्य दादा गुरु ब्रम्हलीन स्वामी अखण्डानंद जी महाराज कहते थे :- "हीरा गवाई दियो कचरे में"

करुणा सागर सन्त- महापुरु‌षों ने जीव को असहाय स्थिति व माया की प्रबलता को ध्यान में रखते हुए, मानव कल्याण के लिए समय-समय पर अनेक ग्रन्थों व साधना पद्धतियों का उपदेश दिया है। ताकि जिज्ञासु-साधक देश, काल व गुण, स्वभाव के अनुसार अपने आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर सके। जैसे भगवान कपिल ने सांख्य दर्शन का, देवऋषि नारद जी ने भक्ति सूत्रों का और महर्षि पतंजलि जी ने योग दर्शन का उपदेश दिया है। ठीक वैसे ही  जगद्‌गुरु भगवान शंकराचार्य ने वेदान्त् विद्या के साधकों के लिए "विवेक-चूड़ामणि नामक ग्रंथ में बहुत ही सारगर्भित उपदेश दिया है जिसका अनुसरण कर मुमुक्षुजन अविद्या रूपी भव सागर को पार कर जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।

वर्तमान समय में इमी श्रृंखला में गोस्वामी श्री तुलसीदास महाराज द्वारा विरचित "विनय - पत्रिका" विशेष रूप से उल्लेखनीय है। अवधूत श्री दत्तात्रेय की तरह गोस्वामी जी ने साधक के लिए चन्द्रमा की भाँति शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर पूर्विमा तक के साधना सोपानों (यात्रा) का बहुत ही सरस, सरल व सटीक, उपदेश दिया है। गोस्वामी जी कहते हैं कि इसमें कोई सन्देह नहीं है कि भगवद् (आत्म) समझात्कार एक अत्यन्त दुष्कर कार्य है परन्तु गुरु (सन्त) कृपा से यह दुष्कर कार्य भी निश्चित रूप से सरल, सहज व सुगम हो जाता है। 

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !! 

शेष दूसरे भाग में

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