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शनिवार, 21 दिसंबर 2024

"साधना से संबंधित नौ प्रश्न" (भाग-5)


"साधना से संबंधित नौ प्रश्न" (भाग-5)

ॐ!! वंदे गुरु परम्परा !! ॐ

(8) पूजाहीन पुरुषों की गति

राजा निमि ने पूछा कि जिनकी कामनाएँ शान्त नहीं हुई है और मन व इन्द्रियां भी वश में नहीं है तथा जो प्रायः भगवान का भजन भी नहीं करते हैं, ऐसे लोगों की क्या गति होती है?

अब आठवें योगीश्वर श्री चमस जी ने कहा कि जो मनुष्य भगवान का भजन नहीं करता है बल्कि उल्टा उनका अनादर करता है वह मनुव्य योनि से भी च्युत हो जाता है, उसका अधो पतन हो जाता है।

बहुत सी स्त्रियाँ और शुद्र आदि भगवान की कथा और उनके नाम संकीर्तन से कुछ दूर हो गए हैं। वे आप जैसे भगवद - भक्तों की दया के पात्र हैं। आप लोग उन्हें कथा- कीर्तन की सुविधा देकर उनका उद्धार करें।

अज्ञान को ही ज्ञान मानने वालों को कभी शान्ति नहीं मिलती है। जो लोग अन्तर्यामी भगवान श्रीकृष्ण से विमुख हैं उनको विवश होकर बार-बार नरकों की यातना भोगनी पड़ती है।

(9) भगवान किस समय कौन सा रंग, आकार स्वीकार करते हैं और मनुष्य किन-किन नामों से उनकी उपासना करते हैं।

अब नवें योगीश्वर श्री करभाजन जी ने कहा कि युग चार हैं- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग।

सतयुग में भगवान के श्रीविग्रह का रंग श्वेत होता है। सतयुग के लोग मन व इन्द्रियों को वश में रखकर ध्यान रूप तपस्या के द्वारा परमात्मा की आराधना करते हैं।

त्रेतायुग में भगवान के श्रीविग्रह का रंग लाल होता है। उस युग के मनुष्य ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद के द्वारा भगवान श्रीहरि को आराधना करते हैं।

द्वापरयुग में भगवान के श्रीविग्रह का रंग (साँवला) होता है। वे लोग ज्ञानस्वरूप भगवान वासुदेव को बार-बार नमस्कार करते हुए स्तुति करते हैं।

कलियुग में भगवान के श्रीविग्रह का रंग कृष्ण (काला) होता है। कलियुग में श्रेष्ठ बुद्धि सम्पन्न पुरुष भगवान के नाम, लीला, गुणों का सकीर्तन करते हुए भगवान की पूजा अर्चना करते हैं।

कलियुग में केवल संकीर्तन से ही सारे स्वार्थ और परमार्थ बन जाते हैं इसलिए इस युग का गुण जाननेवाले सारग्राही श्रेष्ठ पुरुष कलियुग में नाम संकीर्तन से ही परम लाभ को प्राप्त कर लेते हैं इस प्रकार विदेह राजा निमि ने उनसे सुने हुए भागवत धर्मो का आचरण किया और परमगति को प्राप्त कर लिया ।।

पूज्य गुरु‌देव कहते हैं कि श्रीमद्‌भागवत में वर्णित विदेह राजा निमि और नौ योगीश्वरों का प्रसंग कर्म, उपासना और ज्ञान मार्ग के साधकों के लिए परम् हितकारी है। यह प्रश्न राजा निमि के नही बल्कि हमारे हैं। इन नौं प्रश्नों के माध्यम से नौं योगीश्वरों ने साधकों की जिज्ञासाओं और साधना संबंधी प्रश्नों का बहुत ही सम्यक् ढंग से समाधान करते हुए हम सभी का मार्गदर्शन किया है। योगीश्वरों द्वारा उपदेशित साधना पद्धति व मार्गदर्शन का अनुसरण करने से हम संशय और भ्रम से रहित होकर अपने शुद्ध   स्वरूप में अवस्थित होकर कृत्य - कृत्य (आनन्द स्वरूप) हो सकते हैं।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !! 

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