(7) भगवान के अवतारों का वर्णन
राजा निमि ने पूछा कि भगवान स्वतन्त्रता से अपने भक्तों की भक्ति के वश होकर अनेक प्रकार के अवतार ग्रहण करते और अनेकों लीलाएं करते हैं। आप कृपा करके भगवान की उन लीलाओं का वर्णन कीजिये जो वे अब तक कर चुके हैं, कर रहे हैं या करेंगे !
अब सातवें योगीश्वर श्री द्रुमिल जी ने कहा कि राजन भगवान अनन्त और उनके गुण भी अनन्त हैं। जो यह सोचता है कि मैं उनके गुणों को गिन लूँगा, वह मूर्ख है। यह तो सम्भव है कि कोई किसी प्रकार पृथ्वी के धूलि कणों को गिन ले, परन्तु समस्त शक्तियों के आश्रय श्री हरि (भगवान) के अनन्त गुणों का कोई कभी भी पार नहीं पा सकता है।
पहले-पहल जगत् की उत्पति के लिए उनके रजोगुण से ब्रहमा फिर वे आदिपुरुष ही संसार की स्थिति के लिए अपने सत्व अंश से प्रज्ञा (सृष्टि) के रक्षक विष्णु बन गए। फिर वे ही तमोगुण के अंश से जगत् के संहारक रुद्र रूप बन गए। इस प्रकार निरंतर उन्हीं से परिवर्तनशील प्रजा की उत्पत्ति-स्थिति और संहार होते रहते हैं।
भगवान विष्णु अपने स्वरूप में एकरस स्थित रहते हुए भी सम्पूर्ण जगत के कल्याण के लिए बहुत से कलावतार ग्रहण किये हैं! विदेहराज, हंस, दत्तात्रेय, सनक-सनन्दन सनातन-सनत्कुमार और हमारे पिता ऋतभदेव के रूप में अवतीर्ण होकर उन्होंने आत्म- साक्षात्कार के साधनों का उपदेश किया है।
उन्होंने ही ह्यग्रीव अवतार लेकर मधु-कैटभ नामक असुरों का संहार करके उनके द्वारा चुराये हुए वेदों की उदार किया।
प्रलय के समय मत्स्यावतार लेकर उन्होंने, भावी मनु सत्यव्रत, पृथ्वी और औषधियों-अन्न आदि की रक्षा की। वराहवतार ग्रहण करके पृथ्वी का रसातल से उदार करते समय हरिण्याक्ष का संहार किया !
कूर्मावतार ग्रहण कर उन्हीं भगवान ने अमृत मन्थन सम्पन्न करवाया और उन्हीं भगवान विष्णु ने अपने शरणगत हुए भक्त गजेन्द्र को ग्राह से छुड़ाया।
जब हिण्यकशिपु प्रहलाद आदि संत पुरुषों को भय पुहंचाने लगा तो तब भगवान ने नरसिंह का अवतार ग्रहण किया। फिर वामन अवतार ग्रहण करके उन्होंने के याचना के बहाने इम पृथ्वी को दैत्यराज बलि से छीन लिया और देवताओं को दे दिया।
परशुराम अवतार ग्रहण करके पृथ्वी को इक्कीस बार अत्याचारी क्षत्रियों से हीन किया। उन्होंने भगवान श्रीराम के रूप में समुद्र पर पुल बांधा और रावण का संहार किया। उनकी कीर्ति समस्त लोकों के मल को नष्ट करने वाली है। सीतापति भगवान श्रीराम सदा-सर्वदा, सर्वत्र विजयी -ही- विजयी हैं।
अजन्मा होने पर भी पृथ्वी का भार उतारने के लिए ही वे ही यदुवंश में जन्म लेंगे। फिर आगे चलकर भगवान बुद्ध के रूप में प्रकट होगे और कलियुग के अन्त में कल्कि अवतार के रूप में प्रकट होंगे।
ॐ शांति शांति शांति !!
शेष पांचवें भाग में
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