"जीने की कला"
ॐ!! वंदे गुरु परंपराम् !! ॐ
दुःख, परेशानिया, समस्याएं मानव जीवन का अभिन्न अंग है। जीवन रूपी सागर में लाभ हानि के उतार चड़ाव आते रहते हैं। एक सामान्य व्यक्ति उनसे दुखी होकर निराशा व हताश हो जाता है जबकि एक साधक उन्हीं घटनाओं से शिक्षा लेकर अपनी जीवन यात्रा की दिशा जगत से जगदीश को और मोड देता है और उसे संसार की असलियत का पता चल जाता है। पूज्य गुरुदेव साधकों को कहते हैं कि जीवन मे दुख आना Part of Life है, और उन दुखों से पार जाना Art of Life है। इस सम्बंध में पूज्य गुरुदेव की एक प्रसिद्ध कविता है "हर समय खुशहाल रहना कोई हम से सीख ले"। दुःख सागर में डूब रहे लोगों पार ले जाने के लिए एक सुदृढ़ नौका / उपदेश है । जिसका उदारहण हमें माता कुंती के जीवन से मिलता है।
महाभारत की कुंती एक विलक्षण व्यक्तित्व थीं, जो अपने धैर्य, त्याग और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के लिए जानी जाती हैं। उनके जीवन की सबसे गहरी आध्यात्मिक घटना वह थी, जब उन्होंने भगवान कृष्ण से दुखों का वरदान मांगा। यह सुनकर सभी अचंभित हुए, क्योंकि सामान्यतः मनुष्य सुख और समृद्धि की कामना करता है, लेकिन कुंती ने विपरीत राह चुनी। कुंती का तर्क यह था कि जब-जब वे विपत्तियों में होती हैं, तब-तब उन्हें भगवान कृष्ण की निकटता का अनुभव होता है।
दुख उन्हें ईश्वर के प्रति समर्पित होने और उनकी कृपा का अहसास कराने का माध्यम बनते हैं। इसके विपरीत, सुख के समय में मनुष्य का मन भटक जाता है और वह ईश्वर को भूलने लगता है। कुंती ने यह गहरी समझ प्राप्त की थी कि सांसारिक सुख-दुख माया के खेल हैं, और इनका वास्तविक उद्देश्य आत्मा को परिपक्व बनाना और ईश्वर के निकट लाना है। उनके जीवन में अनगिनत विपत्तियां आईं—पति पांडु की मृत्यु, पांडवों का वनवास, द्रौपदी का अपमान, और कौरवों के अत्याचार—लेकिन उन्होंने कभी भी ईश्वर पर से विश्वास नहीं खोया। उनके लिए दुख जीवन का अभिशाप नहीं, बल्कि आत्मा के शुद्धिकरण और ईश्वर की शरण में जाने का अवसर था।
कुंती का यह दृष्टिकोण गहरे आध्यात्मिक सिद्धांतों पर आधारित था, जो यह सिखाते हैं कि मानव जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष है, और यह केवल ईश्वर के साथ एकत्व में निहित है। उनका विश्वास था कि विपत्तियां मनुष्य को उसके अहंकार और सांसारिक आसक्तियों से मुक्त कर सकती हैं, जिससे वह ईश्वर के प्रति समर्पित हो सके। कुंती का यह निर्णय उनके आत्मबल, धैर्य और आध्यात्मिक परिपक्वता का प्रतीक है। उन्होंने यह समझ लिया था कि सच्चा सुख बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि ईश्वर की कृपा और उनकी शरण में है। उनकी यह प्रार्थना न केवल उनकी आध्यात्मिक ऊंचाई को दर्शाती है, बल्कि हमें जीवन के कठिन समय में धैर्य और ईश्वर पर अटूट विश्वास रखने की प्रेरणा भी देती है। कुंती का यह दृष्टिकोण यह सिखाता है कि दुख जीवन का अंत नहीं, बल्कि आत्मिक उत्थान का साधन हैं। उन्होंने विपत्तियों को एक अवसर के रूप में स्वीकार किया और दिखाया कि सच्चा सुख ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण में निहित है।
कुंती का जीवन और उनकी यह प्रार्थना हमें यह समझने में मदद करती है कि सांसारिक सुख-दुख क्षणिक हैं, लेकिन ईश्वर के साथ संबंध स्थायी है। उनके लिए दुख वह माध्यम था, जिसने उन्हें बार-बार ईश्वर की ओर प्रेरित किया और इस संसार के मोह-माया से ऊपर उठने में मदद की। इस प्रकार, कुंती का दुख मांगने का कारण उनकी गहन आध्यात्मिकता और ईश्वर के प्रति उनकी अनन्य भक्ति थी, जिसने उन्हें विपत्तियों को भी ईश्वर की कृपा के रूप में स्वीकार करने की शक्ति दी।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !!
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