Total Blog Views

Translate

मंगलवार, 6 मई 2025

'समाधि: आत्म-साक्षात्कार की अंतिम अवस्था'


 'समाधि: आत्म-साक्षात्कार की अंतिम अवस्था' 

ॐ  !! वंदे  गुरु परंपराम् !! ॐ

समाधि वेदांत में आत्मसाक्षात्कार की अंतिम अवस्था मानी गई है, जहाँ साधक ‘अहं ब्रह्मास्मि’ की प्रत्यक्ष अनुभूति करता है। यह वह स्थिति है जहाँ आत्मा और ब्रह्म के भेद का पूर्ण लोप हो जाता है और केवल निर्गुण, निर्विकल्प, अद्वितीय चैतन्य का अनुभव शेष रहता है। उपनिषदों में इसे ‘तुरीय’ कहा गया है – वह अवस्था जो जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति के पार है। मांडूक्य उपनिषद कहती है — “नान्तःप्रज्ञं न बहिष्प्रज्ञं... प्रपञ्चोपशमं शान्तं शिवमद्वैतं चतुर्थं मन्यन्ते स आत्मा स विज्ञेयः।” अर्थात, यह अवस्था न अंतःप्रज्ञ है, न बहिष्प्रज्ञ, न समुच्चयप्रज्ञ; यह सम्पूर्ण प्रपंच का शमन, शांति, शिव और अद्वैत है, वही आत्मा है और जानने योग्य है। समाधि का यही तात्पर्य है — प्रपंच का शमन, द्वैत का विलय और आत्मस्वरूप की पूर्ण चेतना।

विवेकचूडामणि में आदि शंकराचार्य समाधि को ज्ञान की पुष्टि की अवस्था बताते हैं। वे कहते हैं — “ज्ञानस्य तु अवलम्बः समाधिः। सा तु निरोधरूपा मानसं वृतिअभावनिष्ठा।" अर्थात, समाधि वह आधार है जिस पर आत्मज्ञान पुष्ट होता है, और वह चित्तवृत्तियों की निवृत्ति में स्थित होती है। यह मन का लय नहीं, अपितु मन का ब्रह्म में पूर्ण रूप से अवस्थित होना है। यहाँ साधक का ‘स्व’ समाप्त नहीं होता, बल्कि वह ‘स्व’ अपनी पूर्णता में, अपने असली स्वरूप में स्थित हो जाता है। ‘तत्त्वमसि’ का बौद्धिक बोध, जब अनुभूत रूप में परिणत होता है, तो वही समाधि कहलाती है। यही आत्मानुभूति का चरम शिखर है, जहाँ ज्ञान और ज्ञाता दोनों विलीन हो जाते हैं।

भगवद्गीता समाधि को ‘स्थिरबुद्धि योग’ के रूप में वर्णित करती है। श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं — “यदा विनियतं चित्तमात्मन्येवावतिष्ठते। निःस्पृहः सर्वकामेभ्यो युक्त इत्युच्यते तदा॥” (गीता 6.18) — अर्थात जब चित्त पूरी तरह से संयमित होकर आत्मा में ही स्थित हो जाता है, और समस्त इच्छाओं से रहित हो जाता है, तभी वह समाधिस्थ योगी कहलाता है। गीता का योग दृष्टिकोण द्वैत का अतिक्रमण कर अद्वैत में प्रवेश की प्रक्रिया है। समाधि वहाँ साधन नहीं, अपितु फलरूप स्थिति है। यह वह अवस्था है जहाँ कर्म, उपासना और ज्ञान – तीनों की पराकाष्ठा एक ही बिंदु पर एकत्र होती है।

आत्मबोध ग्रंथ में भी समाधि को आत्मानुभूति का द्वार बताया गया है। “समाधिना अनन्यचेतसा नित्यात्मानं निरीक्षते।" — अर्थात साधक जब एकचित्त होकर समाधि करता है, तो वह नित्य आत्मा का साक्षात्कार करता है। आत्मबोध में शंकराचार्य स्पष्ट करते हैं कि केवल शास्त्र और गुरु से सुनना पर्याप्त नहीं है; जब तक मन पूरी तरह वासनाओं से मुक्त होकर आत्मा में नहीं लीन होता, तब तक आत्मज्ञान स्थायी नहीं होता। इसलिए समाधि केवल ध्येय नहीं, आत्मज्ञान को जीवित और अखंड बनाए रखने का माध्यम भी है। यह ‘निरवधि ज्ञान स्थितप्रज्ञता’ की स्थिति है।

ब्रह्मसूत्र में समाधि को स्पष्ट रूप से शब्दबद्ध नहीं किया गया है, परन्तु उसमें जो ब्रह्मज्ञान की सिद्धि की बात आती है, वह अंततः समाधि के ही स्वरूप की पुष्टि है। शंकराचार्य ब्रह्मसूत्र भाष्य में कहते हैं — “आत्मदर्शनं परं पुरुषार्थः” — आत्मा का साक्षात्कार ही परम पुरुषार्थ है। और यह साक्षात्कार केवल तब संभव है जब मन स्थिर, वृत्तिहीन और ब्रह्म में पूर्णतः स्थित हो जाए। दृष्टि-दृश्य-विवेक में भी कहा गया है — “दृश्यविलयनं समाधिः।” अर्थात, दृश्य जगत के विलय को ही समाधि कहा गया है। जब दृश्य का बोध समाप्त हो जाए और केवल दृष्टा का अनुभव शेष रह जाए, वही समाधि है। यह दृष्टा कोई सीमित अहं नहीं, अपितु स्वयं ब्रह्म है।

समाधि का यह स्वरूप वेदांत के अनुसार केवल अल्पकालिक तात्कालिक अनुभव नहीं है, बल्कि यह चिरस्थायी आत्मस्थिति है। यह कोई योगिक चमत्कार नहीं, अपितु पूर्ण विवेक, वैराग्य, शमादि षट्सम्पत्ति और मुमुक्षुत्व के पश्चात, श्रवण, मनन और निदिध्यासन की निष्पत्ति है। यह वह स्थिति है जहाँ साधक के लिए न कुछ प्राप्त करने योग्य बचता है, न कुछ त्याज्य होता है। वह न तो बाह्य जगत में प्रवृत्त होता है, न ही मन के अंतर्गामी संसार में। वह केवल आत्मस्वरूप में अवस्थित होता है — “शान्तो दान्तः उपरतः तितिक्षुः श्रद्धालु समाधिस्थः” — यही मुक्ति का द्वार है। यही सम्यक समाधि है, जो आत्मसाक्षात्कार की संपूर्णता है।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !! 

"You can read this blog in any language. All you need to do is click on the translate button provided at the top left corner of the page. By clicking it, you can read it in your preferred language."

आप इस ब्लॉग को किसी भी भाषा में पढ़ सकते हैं आपको बस इतना करना है कि पेज के ऊपर बायें हिस्से में ट्रांसलेट का बटन दिया गया है। आप उसे क्लिक कर के अपनी मनपसंद भाषा में इसे पढ़ सकते हैं।


Kindly follow, share, and support to stay deeply connected with the timeless wisdom of Vedanta. Your engagement helps spread this profound knowledge to more hearts and minds.