विवेकचूडामणि का परिचय (आदि शंकराचार्य द्वारा)
ॐ !! वंदे गुरु परंपराम् !! ॐ
विवेकचूडामणि आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक अत्यंत प्रसिद्ध और प्रभावशाली ग्रंथ है, जो अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों का सारगर्भित वर्णन करता है। ‘विवेक’ का अर्थ है – विवेचन या भेद करने की शक्ति, और ‘चूडामणि’ का अर्थ है – मुकुट में जड़ित सर्वोत्तम रत्न। अर्थात यह ग्रंथ आत्मबोध के लिए आवश्यक विवेक का सर्वोत्तम मार्गदर्शक है। यह ग्रंथ उन साधकों के लिए रचा गया है जो संसार की नश्वरता को समझ कर आत्मा के शाश्वत स्वरूप को जानने की तीव्र आकांक्षा रखते हैं।
इस ग्रंथ में कुल 580 श्लोक हैं, जो गुरु और शिष्य के संवाद के रूप में रचे गए हैं। शिष्य आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए गुरु की शरण में आता है और प्रश्न करता है कि संसार के दुखों से मुक्ति कैसे मिले, और परम सत्य को कैसे जाना जाए। गुरु अत्यंत करुणा और ज्ञान के साथ उत्तर देता है और उसे आत्मा और ब्रह्म की अद्वैत सत्ता का बोध कराता है।
विवेकचूडामणि की विशेषता यह है कि यह केवल दार्शनिक चिंतन नहीं है, बल्कि एक जीवंत साधना-पथ है। आदि शंकराचार्य ने पहले अध्याय में ही यह स्पष्ट कर दिया है कि मानव जन्म, सत्संग, और आत्ममुक्ति की आकांक्षा – ये तीनों अत्यंत दुर्लभ हैं। यदि यह तीनों उपलब्ध हों, और फिर भी आत्मसाक्षात्कार न हो, तो यह जीवन व्यर्थ है।
इस ग्रंथ में आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक चार साधन– विवेक (नित्य और अनित्य का भेद), वैराग्य (विषयों से वैराग्य), षट्सम्पत्ति (शम, दम, उपरति, तितिक्षा, श्रद्धा, समाधान), और मुमुक्षुत्व (मोक्ष की तीव्र इच्छा)– को विस्तार से समझाया गया है। इसके पश्चात गुरु उपदेश देते हैं कि आत्मा कभी जन्म नहीं लेती, न ही मरती है; वह साक्षी, निर्गुण, शुद्ध, बुद्ध और नित्य है। अज्ञान के कारण ही जीव अपने को शरीर, मन, बुद्धि आदि से जोड़ लेता है और बंधन में पड़ता है।
शंकराचार्य कहते हैं कि इस अज्ञान को केवल आत्मज्ञान के प्रकाश से ही समाप्त किया जा सकता है। यह ज्ञान शास्त्रों के अध्ययन (श्रवण), चिंतन (मनन), और ध्यान (निदिध्यासन) से प्राप्त होता है। गुरु की कृपा से जब शिष्य का मन एकाग्र होता है, तब उसे अपनी असली पहचान का बोध होता है—"अहं ब्रह्मास्मि" (मैं ही ब्रह्म हूँ)।
हमारे इस ब्लॉग में हम प्रतिदिन विवेकचूडामणि के दो श्लोकों की गहराई से व्याख्या करेंगे—उनका शाब्दिक अर्थ, तात्त्विक मर्म, और साधक के जीवन में उनका महत्व। यह श्रंखला न केवल जिज्ञासुओं के लिए ज्ञान का स्रोत बनेगी, बल्कि आत्मप्रकाश की ओर एक दृढ़ कदम सिद्ध होगी।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !!