"विवेकचूडामणि ग्रंथ का तीसरा श्लोक"
ॐ !! वंदे गुरु परंपराम् !! ॐ
यह विवेकचूडामणि ग्रंथ का तीसरा श्लोक है, जो शंकराचार्य द्वारा रचित एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें आत्मज्ञान के पथ पर अग्रसर होने वाले साधकों के लिए आवश्यक गुणों, साधनों और अवस्थाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। प्रस्तुत श्लोक में शंकराचार्य जी कहते हैं:
"दुर्लभं त्रयमेवैतद्देवानुग्रहहेतुकम्।
मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुषसंश्रयः॥3।।
अर्थात् यह तीन बातें अत्यंत दुर्लभ हैं और केवल ईश्वर की कृपा से ही प्राप्त होती हैं — (1) मनुष्यत्व, अर्थात् मनुष्य का जन्म, (2) मुमुक्षुत्व, अर्थात् मोक्ष की तीव्र इच्छा और (3) महापुरुषसंश्रय, अर्थात् किसी महान आत्मज्ञानी पुरुष का संग या उनके सान्निध्य में रहना।
(1) मनुष्यत्व:
संस्कृत साहित्य और वेदांत में मनुष्य-जन्म को अत्यंत दुर्लभ कहा गया है। अन्य योनियों में जैसे पशु, पक्षी, कीट आदि में चेतना तो होती है, परंतु उनमें आत्मचिंतन और विवेक की क्षमता नहीं होती। केवल मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे पुरुषार्थों की खोज करने की क्षमता प्राप्त है। अतः आत्मा की मुक्त अवस्था को प्राप्त करने का अवसर केवल मनुष्य जीवन में ही मिलता है। इसलिए मनुष्य-जन्म को दुर्लभ बताया गया है।
(2) मुमुक्षुत्व:
मनुष्य-जीवन मिलने के बाद भी यदि उसमें मोक्ष की आकांक्षा न हो, तो वह जीवन व्यर्थ हो जाता है। संसार में अधिकतर लोग केवल भोग-विलास, धन, पद और परिवार में ही उलझे रहते हैं। जो व्यक्ति इन क्षणभंगुर वस्तुओं में स्थायित्व नहीं खोजता, और इनसे ऊपर उठकर “मैं कौन हूँ?”, “मुझे जन्म क्यों मिला है?” जैसे प्रश्न करता है, और इनका उत्तर पाने के लिए सच्चे हृदय से प्रयास करता है — वही मुमुक्षु कहलाता है। यह स्वभाव भी किसी पूर्व जन्म की साधना और ईश्वर की विशेष कृपा से ही विकसित होता है।
(3) महापुरुषसंश्रय:
चाहे मनुष्य-जन्म हो और मुमुक्षुत्व हो, परंतु यदि किसी सद्गुरु या आत्मज्ञानी महापुरुष का मार्गदर्शन नहीं मिले, तो आत्मज्ञान की यात्रा में बाधाएँ आ सकती हैं। गुरु के बिना यह मार्ग अंधकारमय और भ्रमपूर्ण हो सकता है। एक महापुरुष न केवल साधक की अंतर्यात्रा को दिशा देता है, बल्कि उसे अपने जीवन के उदाहरण से प्रेरित भी करता है। यह संग भी पूर्व जन्मों के पुण्य और भगवत्कृपा का फल होता है।
इस प्रकार यह श्लोक हमें बताता है कि आत्मसाक्षात्कार के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए तीन प्रमुख बातों की प्राप्ति अनिवार्य है: मनुष्य का जन्म, मोक्ष की तीव्र इच्छा और आत्मज्ञानी गुरु का संग। ये तीनों ही दुर्लभ हैं और ईश्वर की विशेष अनुकंपा से ही मिलते हैं। इसलिए यदि ये तीनों जीवन में प्राप्त हो जाएँ, तो साधक को चाहिए कि वह इस अवसर को व्यर्थ न जाने दे और अपने आत्मकल्याण की दिशा में सच्चे मन से प्रयास करे। यही सच्चा जीवन है और यही मानव-जन्म का परम उद्देश्य भी।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !!