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बुधवार, 11 जून 2025

"विवेकचूडामणि ग्रंथ का 18वां श्लोक"



"विवेकचूडामणि ग्रंथ का 18वां श्लोक"

"साधन-चतुष्टय अध्याय"

ॐ  !! वंदे  गुरु परंपराम् !! ॐ

साधनान्यत्र चत्वारि कथितानि मनीषिभिः ।

येषु सत्स्वेव सन्निष्ठा यदभावे न सिद्ध्यति ॥ १८ ॥

अर्थ:- यहाँ मनस्वियों ने जिज्ञासा के चार साधन बताये हैं, उनके होने से ही सत्य स्वरूप आत्मा में स्थिति हो सकती है, उनके बिना नहीं।

इस श्लोक में मनीषियों द्वारा चार साधनों का वर्णन किया गया है, जिनके द्वारा व्यक्ति सत्य स्वरूप आत्मा में स्थित हो सकता है। ये चार साधन हैं - विवेक, वैराग्य, शत्सम्पत्ति और मुमुक्षुत्व। इन साधनों की उपस्थिति से ही आत्मसाक्षात्कार की दिशा में प्रगति हो सकती है, और इनकी अनुपस्थिति में आत्मा के सत्य स्वरूप में स्थित होना असंभव होता है।

विवेक का अर्थ है सत्य और असत्य के बीच का अंतर समझना। यह वह बुद्धि है जो आत्मा को उसके वास्तविक स्वरूप के प्रति जागरूक करती है और भ्रामक दुनिया से अलग पहचानने की क्षमता प्रदान करती है। विवेक के बिना, व्यक्ति संसारिक वस्तुओं में फंसा रहता है और आत्मा का वास्तविक स्वरूप उसे ज्ञात नहीं हो पाता।

वैराग्य वह विशेषता है जो व्यक्ति को भोगों और सांसारिक सुखों से निराश और विरक्त कर देती है। यह उस स्थिति का नाम है जब व्यक्ति समझता है कि संसारिक सुख अस्थायी और दुखदायी हैं, और इसलिए वह इनसे दूर रहना चाहता है। वैराग्य के बिना, मनुष्य अपने मन और इंद्रियों के नियंत्रण से बाहर हो जाता है, जो आत्मा की सच्ची पहचान में रुकावट डालता है।

शत्सम्पत्ति का अर्थ है छह गुण - शम (शांति), दम (साधन), उपरति (संसार से विरक्ति), तितिक्षा (धैर्य), श्रद्धा (विश्वास), और समाधान (संतोष)। ये सभी गुण व्यक्ति को मानसिक रूप से दृढ़ बनाते हैं और आत्मसाक्षात्कार की ओर अग्रसर करते हैं। इन गुणों के बिना, आत्मा की सच्ची स्थिति में पहुँचना संभव नहीं है, क्योंकि यह व्यक्ति की मानसिक अवस्था को अस्थिर कर देता है।

मुमुक्षुत्व का अर्थ है मुक्ति की तीव्र इच्छा। यह एक गहरी आकांक्षा है जो आत्मा के सच्चे स्वरूप को जानने और मुक्त होने की इच्छा को उत्पन्न करती है। मुमुक्षुत्व के बिना, व्यक्ति जीवन भर आत्मा के सत्य को पहचानने की ओर ध्यान नहीं देता और संसार में उलझा रहता है।

इन चार साधनों के बिना, व्यक्ति आत्मा के सत्य स्वरूप में स्थित नहीं हो सकता। इन साधनों का अभ्यास और पालन करने से ही व्यक्ति अपने भीतर के दिव्य सत्य को जान सकता है और इस संसार से ऊपर उठकर आत्मा की वास्तविकता को समझ सकता है। अत: इन चार साधनों का समावेश किसी भी साधक की साधना में अनिवार्य है।

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !! 

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