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शनिवार, 14 जून 2025

"विवेकचूडामणि ग्रंथ का 21वां श्लोक"


"विवेकचूडामणि ग्रंथ का 21वां श्लोक"

"साधन-चतुष्टय अध्याय"

ॐ  !! वंदे  गुरु परंपराम् !! ॐ

तद्वैराग्यं जुगुप्सा या दर्शनश्रवणादिभिः 

देहादिब्रह्मपर्यन्ते ह्यनित्ये भोगवस्तुनि ॥ २१ ॥

अर्थ:-दर्शन और श्रवणादि के द्वारा देह से लेकर ब्रह्मलोक पर्यन्त सम्पूर्ण अनित्य भोग्य पदार्थों में जो घृणा बुद्धि है वही 'वैराग्य' है।

यह श्लोक यह बताते हुए 'वैराग्य' का वास्तविक स्वरूप प्रस्तुत करता है कि यह केवल किसी विशेष वस्तु से निराशा या तिरस्कार का परिणाम नहीं है, बल्कि यह एक गहरी समझ और आंतरिक घृणा से उत्पन्न होता है। 'वैराग्य' का अर्थ है वह मानसिक स्थिति, जिसमें व्यक्ति अनित्य और भोग्य वस्तुओं से अप्रभावित और दूर रहता है।

यह श्लोक विशेष रूप से यह बताता है कि जब व्यक्ति दर्शन, श्रवण और अन्य साधनों के द्वारा संसार की भौतिक वस्तुओं की अस्थायिता और अनित्यत्व को समझता है, तब वह उन वस्तुओं के प्रति घृणा या अरुचि विकसित करता है। शास्त्रों और साधना के माध्यम से प्राप्त यह ज्ञान उसे यह समझने में मदद करता है कि भौतिक संसार में सभी वस्तुएं, चाहे वह देह हो या ब्रह्मलोक, अंततः नाशवान हैं। इन अनित्य पदार्थों के प्रति लगाव या आसक्ति केवल दुःख का कारण बनती है।

इसी घृणा बुद्धि का नाम 'वैराग्य' है। यह घृणा किसी व्यक्तिगत नापसंदगी का परिणाम नहीं है, बल्कि यह एक गहरे विवेक और जागरूकता का परिणाम है कि जो कुछ भी अस्थायी और बदलने योग्य है, वह स्थायी सुख नहीं प्रदान कर सकता। यह वैराग्य व्यक्ति को भोगों से विमुख करता है, क्योंकि उसे यह स्पष्ट हो जाता है कि इन भोगों में कोई वास्तविक और स्थायी सुख नहीं है।

इस प्रकार, जब व्यक्ति भौतिक संसार की अस्थायीता को समझता है और उसे लेकर एक प्रकार की मानसिक घृणा का अनुभव करता है, तो वह उन भौतिक पदार्थों और भोगों से दूरी बना लेता है। यह दूरी केवल बाहरी संसार से नहीं, बल्कि मन और हृदय की गहरी स्थिति से होती है। वैराग्य का यह रूप केवल आत्मज्ञान और साधना के माध्यम से ही संभव है।

साधक के लिए यह आवश्यक है कि वह भौतिक संसार के प्रति अपनी मानसिक स्थिति को परिवर्तित करे, ताकि वह आत्मा के वास्तविक स्वरूप में स्थिर हो सके। वैराग्य केवल एक मानसिक स्थिति नहीं है, बल्कि यह आत्मा की सच्चाई के प्रति जागरूकता का परिणाम है। इस प्रकार, यह श्लोक हमें यह शिक्षा देता है कि संसार की अस्थायिता और भोगों की असलियत को समझकर ही हम सच्चे वैराग्य को प्राप्त कर सकते हैं।


ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !! 

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